हर-लहज़: ब-शक्ले बुत-ए-'अय्यार बर आमद दिल बुर्द-ओ-निहाँ शुद
हर-लहज़: ब-शक्ले बुत-ए-'अय्यार बर आमद दिल बुर्द-ओ-निहाँ शुद
हर-दम ब-लिबास-ए-दिगर आँ यार बर आमद गह पीर-ओ-जवाँ शुद
हर लहज़ा वह बुत-ए-अय्यार एक नई ही शक्ल में ज़ाहिर होता है, दिल छीनता है और ग़ायब हो जाता है।
हर दम वह यार दूसरों के लिबास में ज़ाहिर होता है, कभी बूढ़े के रूप में और कभी जवान के।
ख़ुद-कूज़ः-ओ-ख़ुद-कूज़ः-गर-ओ-ख़ुद-गिल-ए-कूज़ः ख़ुद-रिन्द-ए-सुबू-कश
ख़ुद-बर-सर-ए-आँ कूज़ः-ख़रीदार बर आमद बशकस्त रवाँ शुद
वह खुद ही कूज़ा है, खुद ही कूज़ा बनाने वाला और खुद ही कूज़ा की मिट्टी और खुद ही रिंद और मय-ख़्वार है
खुद वह इस प्याले का ख़रीदार बन कर आता है, और उसे तोड़ कर चला जाता है।
ने ने कि हमू बूद कि मी-आमद-ओ-मी-रफ़्त हर क़र्न कि दीदे
ता 'आक़िबत आँ शक्ल-ए-'अरब वार बर-आमद दारा-ए-जहाँ शुद
नहीं नहीं, वही था जो हर सदी में आता और जाता रहा, और अंत में वही अरबी रूप में प्रकट हुआ और दुनिया का मालिक बन गया।
ने ने कि हमू बूद कि मी-गुफ़्त अनल-हक़ दर सौत-ए-इलाही
'मंसूर' न-बूद आँ कि बर आँ दार बर-आमद नादाँ ब-गुमाँ शुद
नहीं नहीं, वही वही ज़ात थी जो ईश्वरीय आवाज़ में “अनल-हक़” कहती थी। वह मंसूर नहीं था जिसे सूली पर चढ़ाया गया और जो लोग अज्ञानी थे, उन्होंने समझ लिया कि वह वही है।
हक़्क़ा कि हमू बूद कि अंदर यद-ए-बैज़ा मी-कर्द शबानी
दर चोब शुद-ओ-बर सिफ़त-ए-मार बर-आमद ज़ाँ फ़ख़्र-ए-कियाँ शुद
निश्चय ही वही ज़ात थी जिसने सफ़ेद हाथ लिए चरवाही की, वही असा (छड़ी) में प्रकट हुई, वही साँप के रूप में दिखाई दी और वही राजा-महाराजाओं का गर्व बनी।
मी-गशत दमी चंद बरीं रू-ए-ज़मीन ऊ अज़ बहर-ए-तफ़र्रुज
'ईसा शुद-ओ-बर गुम्बद-ए-दव्वार बर-आमद तस्बीह कुनाँ शुद
वही ज़ात कुछ क्षणों के लिए धरती पर घूमती रही, वही ईसा बन गई, वही आसमान के गुंबद पर प्रकट हुई और वही तस्बीह करती दिखाई दी।
मंसूख़ चे बाशद न तनासुख़ कि हक़ीक़त आँ दिलबर-ए-ज़ेबा
शमशीर शुद-ओ-दर कफ़-ए-कर्रार बर-आमद क़त्ताल-ए-ज़माँ शुद
पुनर्जन्म क्या है और पुनर्जन्म लेने वाले कौन हैं। असलियत यह है कि वही सुंदर दिलबर तल्वार बना और हैदर-ए-कर्रार के हाथ में आकर जमाने का योद्धा बन गया।
'रूमी' सुख़न-ए-कुफ़्र न-गुफ़्तः अस्त-ओ-न-गोयद मुंकिर न-शवेदश
काफ़िर बुवद आँ कस कि ब-इंकार बर-आमद अज़ दोज़ख़याँ शुद
रूमी ने कभी कुफ्र की बात नहीं की और न वह करता है, वह मुनकिर नहीं है।
काफ़िर तो वह है जिसने इनकार किया था यानी शैतान और वही दोज़ख़ियों में से है।
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