ख़बरम रसीदः इमशब कि निगार ख़्वाही आमद
ख़बरम रसीदः इमशब कि निगार ख़्वाही आमद
सर-ए-मन फ़िदा-ए-राह कि सवार ख़्वाही आमद
ख़बर आई है कि आज की रात मेरा महबूब आएगा, मेरी जान उस राह में क़ुर्बान जिस राह से वो सवार आएगा।
हमः आहुवान-ए-सहरा सर-ए-ख़ुद निहाद: बर-कफ़
ब-उम्मीद-ए-आँ कि रोज़े ब-शिकार ख़्वाही आमद
जंगल के सारे हिरन अपनी हथेली पे सर रखे आएँगे, इस उम्मीद में कि तू उन के शिकार के लिए आएगा।
कशिशे कि 'इश्क़ दारद न-गुज़ारदत ब-दींं-साँ
ब-जनाज़: गर न-याई ब-मज़ार ख़्वाही आमद
इश्क़ की कशिश है वो बे-असर नहीं होगी, उम्मीद है कि तू जनाज़े में नहीं तो मज़ार पर ज़रूर आएगा।
ब-लबम रसीदः जानम तू बिया कि ज़िंद: मानम
पस अज़ आँ कि मन न-मानम ब-चे कार ख़्वाही आमद
जान होंठों तक आ गई है, ज़रा आ जा कि मैं ज़िंदा रह सकूँ, मैं ज़िन्दा ही नहीं रहूँगा तो फिर तेरे आने से क्या होगा।
ब-यक आमदन रुबूदी दिल-ओ-दीन-ओ-सब्र-ए-'ख़ुसरौ'
चे शवद अगर ब-दीं-सा दो-सेह बार ख़्वाही आमद
तुम्हारे एक ही बार आने से ‘ख़ुसरौ’ का दिल-ओ-जान जैसे उड़ गए। अब अगर इसी तरह दो-तीन बार और आ जाओ तो क्या होगा?
- पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 109)
- प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)
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