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मन ज़ सौदा-ए-मोहब्बत वालिह-ओ-दीवान: अम

अहमद शाहजहाँपुरी

मन ज़ सौदा-ए-मोहब्बत वालिह-ओ-दीवान: अम

अहमद शाहजहाँपुरी

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    मन ज़ सौदा-ए-मोहब्बत वालिह-ओ-दीवान: अम

    'आशिक़-ए-शोरीदः-सर मह्व-ए-रुख़-ए-जानान: अम

    मैं मोहब्बत के जुनून में पागल और दीवाना हूँ। मैं एक बेक़रार और भटका हुआ आशिक़ हूँ, जो अपने महबूब के चेहरे की ख़ूबसूरती में डूबा हुआ है।

    मस्ती-ए-मन अज़ निगाह-ए-चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी अस्त

    बन्द:-ए-पीर-ए-मुग़ाँ ख़ाक-ए-दर-ए-मय-ख़ानः अम

    मैं साक़ी की मदहोश निगाहों से मस्त और सरशार हूँ और पीर-ए-मुग़ाँ मेरे मय-ख़ाने की ख़ाक है।

    मन ब-क़ुर्बानत शवम साक़ी-ए-बाद: फ़रोश

    अज़ शराब-ए-बे-ख़ुदी लबरेज़ कुन पैमानः अम

    शराब बेचने वाले साक़ी, मैं तुझ पे क़ुर्बान हो जाऊँ जो तू मदहोश कर देने वाली शराब से मेरे जाम को भर दे।

    'आबिद-ए-जानान: अम मा'बूद-ए-मन हुस्न-ए-वै अस्त

    साकिन-ए-मंज़िल वराए का'ब:-ओ-बूतख़ान: अम

    मैं अपने महबूब का बंदा हूँ, और मेरा माबूद उसका हुस्न है।

    मैं ऐसी मंज़िल में रहने वाला हूँ जो का’बा और बुत-ख़ाना दोनों से परे है।

    कार ख़ुद कुन ज़ाहिदा वज़ कुफ़्र-ओ-ईमानम म-पुर्स

    मश्रबम 'इश्क़स्त-ओ-रिंदी 'आशिक़-ए-दीवानः अम

    ज़ाहिद! अपना काम करो और मेरे कुफ़्र-ओ-ईमान के बारे में मत पूछो।

    मेरा तरीका-ए-ज़िंदगी इश्क़ और रिंदी है, मैं तो एक दीवाना आशिक़ हूँ।

    आँ तजल्लीहा-ए-हुस्न-ए-दिल-बराँ मानिंद-ए-तूर

    बा-हज़ाराँ बर्क़-ओ-शो'लः सोख़्तः काशान: अम

    दिलबर के हुस्न की वे जल्लियाँ तूर की चमक जैसी हैं।

    उन्हीं की हज़ारों बिज्लियों और शोलों ने मेरे दिल के घर को जलाकर ख़ाक कर दिया है।

    दर ख़राबात-ए-मुग़ाँ बा-शाहिदाँ वक़्तम ख़ुशस्त

    ता ब-रिंदी 'अहमदा' मशहूर शुद अफ़्सानः अम

    पीर-ए-मुग़ाँ के मय-ख़ाने में महबूबों के साथ मेरा वक़्त बड़ी ख़ुशी से गुज़रा।

    यहाँ तक कि अहमद! रंदी में मेरी दास्तान मशहूर हो गई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 214)
    • प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)

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