मर्हबा सय्यद-ए-मक्की मदनी-अलअ'रबी
मर्हबा सय्यद-ए-मक्की मदनी-अलअ'रबी
दिल-ओ-जाँ बाद फ़िदायत चे ख़ुश-लक़बी
मन-ए-बे-दिल ब-जमाल-ए-तू अ’जब हैरानम
अल्लाह अल्लाह चे जमालस्त ब-दीं बुल-अ’जबी
मरहबा ऐ मक्की मदनी अरबी सरदार!
दिल ओ जान आप पर फ़िदा, आप कितने अच्छे लक़ब वाले हैं।
चश्म-ए-रहमत ब-कुशा सू-ए-मन अंदाज़ नज़र
ऐ क़ुरैशी लक़बी हाश्मी-ओ-मुत्तलिबी
मैं बेदिल आपके जमाल बाकमाल से बहुत हैरान हूँ,
अल्लाह अल्लाह यह कैसा जमाल है और कैसी बुल'अजबी है (कि एक इंसान में इतना हुस्न, इतनी लताफ़त है कि देखने वालों की अक़्ल हैरान है)।
निस्बते नीस्त ब-ज़ात-ए-तू बनी-आदम रा
बेहतर अज़ आदम-ओ-आ’लम तू चे आ’ली नसबी
चश्म-ए-रहमत वा कीजिए और मुझ पर नजर करम फरमाइए,
ऐ कुरैशी, हाशमी और मुत्तलबी लक़ब वाले (रसूल)।
आ’सियानेम ज़े मा नेकी-ए-आ’माल म-पुर्स
सू-ए-मा रू-ए-शफ़ाअ’त ब-कुन अज़ बे-सबबी
हम सब तिश्ना लब हैं और आपकी ज़ात आब-ए-हयात है
(यानि आप आब-ए-हयात हैं) करम फ़रमाइए कि तिश्ना-लबी हद से बढ़ी जा रही है।
मा हम: तिश्न: लबानेम-ओ-तुई आब-ए-हयात
रहम फ़रमा कि ज़े हद्द मी-गुज़रद तिश्न:-लबी
मेरे सरदार! आप मेरे महबूब और मेरे दिल के तबीब हैं,
क़ुदसी आपकी ख़िदमत में (दर्द दिल के लिए) दर्मां की तलब में आया है।
निस्बत-ए-ख़ुद ब-सगत कर्दम-ओ-बस मुन्फ़ई'लम
ज़ाँ कि निस्बत ब-सग-ए-कू-ए-तू शुद बे-अदबी
सय्यदी अं-त हबीबी-ओ-तबीब-ए-क़लबी
आमद: सू-ए-तू क़ुद्सी पय-ए-दरमाँ तलबी
- पुस्तक : नग़मातुल उंस फ़ी मजालिसिल क़ुदस (पृष्ठ 305)
- रचनाकार :शाह हिलाल अहमद क़ादरी
- प्रकाशन : दारुल एशा'अत ख़ानक़ाह मुजीबिया (2016)
- संस्करण : First
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