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Sufinama

रिहा गश्तम ज़े-हर-क़ैदे न गबरम ने मुसलमानम

मयकश अकबराबादी

रिहा गश्तम ज़े-हर-क़ैदे न गबरम ने मुसलमानम

मयकश अकबराबादी

MORE BYमयकश अकबराबादी

    रिहा गश्तम ज़े-हर-क़ैदे गबरम ने मुसलमानम

    बे-क़ैदम बा-क़ैदम मन ईनम मन आनम

    मैं हर क़ैद से आज़ाद हूँ, अग्नि-पूजक हूँ मुसलमान

    मैं क़ैद हूँ आज़ाद, मैं ये हूँ, वो हूँ

    नमी-ख़्वाहम विसाले रा कि अंजामश बुवद हिज्राँ

    तुई दर्द-ए-दर्मानम तूई सोज़-ए-सामानम

    मुझे ऐसा मिलन नहीं चाहिए जिसका अंजाम विरह हो

    तू ही मेरे दर्द का इ’लाज है, तू ही मेरे जलने का सामान है

    ज़मीनम मन ज़मानम मन मकीनम मन मकानम मन

    मन आनम मन ईनम मन ईनम मन आनम

    मैं ही ज़मीन हूँ मैं ही समय हूँ, मैं ही मकीन हूँ मैं ही मकान हूँ

    मैं वो हूँ मैं ये हूँ, मैं ये हूँ मैं वो हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : मयकदः (पृष्ठ 68)
    • रचनाकार : मयकश अकबराबादी
    • प्रकाशन : आगरा अख़बार, आगरा (1931)

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