सबा ब-सू-ए-मदीनः रू कुन अज़ ईं दुआ-गो सलाम बर ख़्वाँ
सबा ब-सू-ए-मदीनः रू कुन अज़ ईं दुआ-गो सलाम बर ख़्वाँ
निज़ामुद्दीन औलिया
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सबा ब-सू-ए-मदीनः रू कुन अज़ ईं दुआ-गो सलाम बर ख़्वाँ
ब-गिर्द-ए-शाह-ए-मदीन:-गर्द-ओ-ब-सद-तज़र्रोअ पयाम बर ख़्वाँ
ऐ सबा (अच्छी हवा) मदीना जा कर मेरी दुआ’ और सलाम कहना
शाह-ए-मदीना की परिक्रमा कर के सैंकड़ों याचना के साथ मेरा संदेश कहना
ब-शौ ज़े-मन सूरत-ए-मिसाली नमाज़ ब-गुज़ार अंदर आँ-जा
ब-लहन-ए-ख़ुश सुर:-ए-मोहम्मद तमाम अंदर क़ियाम बर ख़्वाँ
वहाँ जा कर हमारी सूरत बनाकर नमाज़ अदा करना और
ख़ूबसूरत लय में पूरा सूरा-ए-मोहम्मद पढ़ना
ब-बाब-ए-रहमत गहे गुज़र कुन ब-बाब-ए-जिब्रील गह जबींं-सा
सलाम-ए-रब्बी-अला नबीइन गहे ब-बाब-ए-सलाम बर ख़्वाँ
कभी बाब-ए-रहमत (कृपा-द्वार) से गुज़र करना और कभी बाब-ए-जिब्रील (जिब्रील-द्वार)पर सर झुकाना कभी बाब-ए-सलाम पर जा कर प्रतिष्टित नबी पर सलाम कहना
बनेह ब-चंदीं अदब तराज़ी सर-ए-इरादत ब-ख़ाक-ए-आँ-कू
सलात-ए-वाफ़िर बर रूह-ए-पाक-ए-जनाब-ए-खै़रुल-अनाम बर ख़्वाँ
बहुत आदर के साथ सर झुका कर सब से बड़े इन्सान को
बहुत सलाम की भेंट करना
ब-लहन-ए-दाऊद हम-नवा शौ ब-नाल:-ओ-दर्द-आश्ना शौ
ब-बज़्म-ए-पैग़म्बर ईं ग़ज़ल रा ज़े-अ’ब्द-ए-आजिज़ 'निज़ाम' बर ख़्वाँ
अच्छी लय में एक साथ दर्द भरी आवाज़ में
पैग़म्बरों की महफ़िल में निज़ाम की ये ग़ज़ल पढ़ना
- पुस्तक : नग़मातुल उंस फ़ी मजालिसिल क़ुदस (पृष्ठ 257)
- रचनाकार :शाह हिलाल अहमद क़ादरी
- प्रकाशन : दारुल एशा'अत ख़ानक़ाह मुजीबिया (2016)
- संस्करण : First
- पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 299)
- प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)
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