ख़ुदा रा ऐ सबा ब-गुज़र ब-सू-ए-ख़ाकसार-ए-मन
ख़ुदा रा ऐ सबा ब-गुज़र ब-सू-ए-ख़ाकसार-ए-मन
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
MORE BYशाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ख़ुदा रा ऐ सबा ब-गुज़र ब-सू-ए-ख़ाकसार-ए-मन
ब-बर दर कू-ए-आँ जानान: ईं मुश्त-ए-ग़ुबार-ए-मन
ख़ुदा के लिए ऐ सबा मुझ ग़रीब पर गुज़र
उस महबूब की गली तक मेरा ये मुश्त-ए-गुबार ले जा
नक़ाब अज़ रुख़ बर अंदाज़ी क़ियामत पर्दः-दार-ए-मन
क़ियामत साज़ कुन इमरोज़ म-पसंद इंतिज़ार-ए-मन
ऐ मेरे पर्दा-दार क़ियामत के दिन रुख़ से नक़ाब हटा
क़ियामत आज बरपा कर दे मेरे इंतिज़ार को पसंद कर
ब-दल्क़-ए-फ़क़्र शाही मी-कुनम अज़ ख़ूबी-ए-ताले’
न जम दारद न के ईं तालेअ'-ए-गर्दूं सवार-ए-मन
अपनी ख़ुश-क़िस्मती की वजह से मैं लिबास-ए-फ़क़्र में बादशाहत कर रहा हूँ आसमान की सवारी करने वाला ऐसा मुक़द्दर न जमशेद को हासिल है कियान को
ब-काम-ए-दीद:-अम सहबाए दीदारे नमी-रेज़ी
नमी दानी मगर गर्दूं ख़ुमार-ए-इंतिज़ार-ए-मन
मेरी आँखों की हलक़ में तू दीदार की शराब नहीं ड़ाल रहा है
ऐ आसमान तू शायद मेरे इंतिज़ार के ख़ुमार को नहीं जानता
'नियाज़' ए’जाज़-ए-’इश्क़सत ईं सुख़न-संजी-ओ-ख़ुश-गोई
वगर्नः शे’र-ए-बे-लग़्ज़िश कुजा कू बे-क़रार-ए-मन
ऐ ‘नियाज़’ ये सुख़न-संजी और ख़ुश-बयानी इ’श्क़ का ए’जाज़ है
वर्ना बे-लग़्ज़िश शे’र कहाँ और मेरे लड़खड़ाते (शे’र) कहाँ
- पुस्तक : दीवान-ए-नियाज़-ए-बे-नियाज़ (पृष्ठ 93)
- संस्करण : First
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