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तू करीमी मन कमीना बूदः अम

रूमी

तू करीमी मन कमीना बूदः अम

रूमी

तू करीमी मन कमीना बूदः अम

लेकिन अज़ लुत्फ़-ए-शुमा परवर्दः अम

हे भगवान! तू दयालु और उदार है, और मैं एक तुच्छ इंसान हूँ।

मैं तेरी उदारता और दयालुता पर निर्भर हूँ।

ज़िंदगी आमद बराए बंदगी

ज़िंदगी बे-बंदगी शर्मिंदगी

ज़िंदगी का उद्देश्य ख़ुदा की आज्ञा का पालन करना है।

ख़ुदा की आज्ञा का पालन करने में केवल हानि ही है।

याद-ए-ऊ सरमाया-ए-ईमाँ बुवद

हर गदा अज़ याद-ए-ओ सुल्ताँ बुवद

ईश्वर का स्मरण ही आस्था और धर्म की पूंजी है

इनकी आज्ञा मानने से नीच व्यक्ति भी राजा बन जाता है

सय्यद-ओ-सरवर मोहम्मद नूर-ए-जाँ

मेहतर-ओ-बेहतर शफ़ीअ-ए-मुज्रिमाँ

हमारे सरदार हज़रत मुहम्मद ब्रह्मांड का जीवन और प्रकाश हैं

आप पापियों के लिये मध्यस्था करने वाले हैं

चूँ मोहम्मद पाक शुद अज़ नार-ओ-दूद

हर कुजा रु कर्द वज्हुल्लाह बूद

हज़रत मोहम्मद संसार की पवित्रतम हस्ती हैं

आप जिस चीज़ का भी हुक्म दें वो ईश्वर का आदेश है

शाहबाज़ी ला-मकानी जान-ए-उ

रहमत-उल-लिल-आलामीं दर शान-ए-उ

वो आप ही हैं जिसे ईश्वर सिंहासन तक ले जाया गया

आप दोनों संसार के लिए वरदान हैं, ऐसा आपके बारे में कहा गया है

मेहतरीन-ओ-बेहतरीन-ए-अंबिया

जुज़ मोहम्मद नीस्त दर अर्ज़-ओ-समा

आप सब से अच्छे और श्रेष्ट नबी हैं।

मोहम्मद के अलावा पृथ्वी और आकाश में कोई और नहीं है।

आँ मोहम्मद हामिद-ओ-महमूद शुद

शक्ल-ए-आबिद सूरत-ए-माबूद शुद

वो मोहम्मद प्रशंसक और प्रशंसित हैं।

उपासक की छवि अब ईश्वर की छवि में परिवर्तित हो गई है।

औलिया अल्लाह, हु अल्लाह औलिया

यानी दीद-ए-पीर दीद-ए-किबरिया

जो ख़ुदा के दोस्त हैं, ख़ुदा उन का दोस्त है

यानी पीर (गुरु) को देखने से ख़ुदा की याद आती है

हर कि पीर-ए-ज़ात-ए-हक़ रा यक दीद

ने मुरीद-ओ-ने मुरीद-ओ-ने मुरीद

जो अपने पीर (गुरु) को ख़ुदा का दोस्त नहीं समझता

वो मुरीद नहीं हो सकता वो मुरीद नहीं हो सकता

मौलवी हरगिज़ न-शुद मौला-ए-रूम

ता-ग़ुलाम-ए-शम्स-ए-तबरेज़ी शुद

मौलवी कभी भी मौलाना रूम होता

अगर हज़रत शम्सुद्दीन तबरेज़ी का मुरीद होता

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नुसरत फ़तेह अली ख़ान

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