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ज़मीन-ओ-आसमाँ रा जल्व:-गाह-ए-यार मी-बीनम

ग़ुलाम हसन बीथवी

ज़मीन-ओ-आसमाँ रा जल्व:-गाह-ए-यार मी-बीनम

ग़ुलाम हसन बीथवी

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    ज़मीन-ओ-आसमाँ रा जल्व:-गाह-ए-यार मी-बीनम

    वजूद-ए-ज़र्र:-ओ-ख़ुर्शीद ज़ाँ रुख़्सार मी-बीनम

    आसमान-ओ-ज़मीन मुझे यार का जल्वा-गाह नज़र आता है

    मुझे उस रुख़्सार में ज़र्रा-ए-ख़ुरशीद का वजूद नज़र आता है

    कसे दर दस्त दारद सुब्हा कस ज़ुन्नार दर गर्दन

    हम: रा रिश्तः-ए-उल्फ़त बा-आँ दिलदार मी-बीनम

    किसी के हाथ में तस्बीह है तो किसी की गर्दन में ज़ुन्नार

    सब का रिश्ता उस दिलदार के साथ नज़र आता है

    कसे दर ज़ुल्मत-ए-कुफ़्र अस्त अज़ हिन्दू-ए-ज़ुल्फ़-ए-ऊ

    कसे रा अहल-ए-दीं अज़ मुसहफ़-ए-रुख़्सार मी-बीनम

    उसकी सियाह ज़ुल्फ़ से कोई कुफ़्र की ज़ुल्मत में है तो

    कोई उसके रुख़्सार के मुसहफ़ की वजह से दीनदार है

    ज़हे बाज़ी-गरी-हा कर्द:ई ईजाद दर आ'लम

    तू रा हर जा ब-रंग-ए-दीगर दिलदार मी-बीनम

    अपनी बाज़ीगरी से तूने दुनिया में ईजादें कीं

    दिलदार मैं तुझे हर जगह एक अलग रंग में देखता हूँ

    चु नर्गिस चश्म ब-कुशा अंदरीं गुलशन तमाशा कुन

    'हसन' दामान-ए-गुल दर पंज:-ए-हर-ख़ार मी-बीनम

    नर्गिस की तरह इस चमन में आँख खोल और देख

    ‘हसन’ तुझे फूल का दामन हर काँटे के पंजे में नज़र आएगा

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 203)
    • प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)

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