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ऐ बादशाह-ए-हुस्न कि ज़ेबिंदः दिलबरी

बेदम शाह वारसी

ऐ बादशाह-ए-हुस्न कि ज़ेबिंदः दिलबरी

बेदम शाह वारसी

MORE BYबेदम शाह वारसी

    बादशाह-ए-हुस्न कि ज़ेबिंदः दिलबरी

    दर ख़ूबी-ए-जमाल ज़े-आलम तू दीगरी

    हुस्न के बादशाह तू ख़ुश-नुमा दिलबर है

    अपनी ख़ूबसूरती की ख़ूबी में तू दुनिया से बिलकुल अलग है

    यारा-ए-मिदहत-ए-तू कि-रा वहीद-ए-अस्र

    शान-ए-तू बरतर अस्त कि आल-ए-पयम्बरी

    नाबिग़ा-ए-रोज़गार-ए-हस्ती तेरी ता’रीफ़ किस से हो सकती है

    तेरी शान बरतर है क्यूँ कि तू आल-ए-पयम्बर है

    अब्द-ए-ज़लील-ओ-ख़्वार-ओ-हक़ीर‌‌‌‌-ए-जहाँ मनम

    बर मन निगाह-ए-लुत्फ़-ओ-करम कुन कि सरवरी

    मैं ज़लील-ओ-ख़ार और बदनाम-ए-ज़माना ग़ुलाम हूँ

    मुझ पर करम की निगाह कर क्यूँ कि तू सरवर-ओ-सरदार है

    हुस्न-ए-अमल न-दारम अज़ पा फ़तादःअम

    दस्तम ब-गीर अज़ करम-ओ-बंदःपरवरी

    मैं आ’जिज़-ओ-दर्मांदा हूँ, मेरे पास कोई नेक अ’मल नहीं है

    बंदा-परवर अपने करम से मेरी दस्त-गीरी फ़रमा

    लिल्लाह शाह-ए-'वारिस'-ए-आलम नवाज़ कुन

    बर हाल-ए-ज़ार-ए-मा नज़र-ए-लुत्फ़-ए-सरसरी

    ख़ुदा के लिए शाह-ए-वारिस-ए-आ’लम पर नवाज़िश कर

    हमारी बुरी हालत पर-लुत्फ़ की नज़र फ़रमा

    मा रा रसाँ ब-मंज़िल-ए-मक़सूद अज़ करम

    गुमराह-ए-राह-ए-रास्तम ख़िज़्र-ए-रहबरी

    अपने करम से हमें मंज़िल-ए-मक़्सूद तक पहुँचा

    मैं राह-ए-रास्त से गुमराह हो चुका हूँ, ख़िज़्र मेरी रहबरी फ़रमा

    आईना-वार शशदर-ओ-हैरान-ओ-मुज़्तरम

    ब-नुमाए शक्ल-ए-ख़्वेश तू रश्क-ए-सिकंदरी

    आईने की तरह मैं हैरान, शश्दर और मुज़्तरिब हूँ

    रश्क-ए-सिकन्दर तू मुझे अपनी शक्ल दिखला

    रह-नवर्द मंज़िल-ए-ख़ासान-ए-किबरिया

    बेहतर ज़े-बेहतरी तू बरतर ज़े-बरतरी

    किबरिया की ख़ास मंज़िल तक क़दम-रंजा फ़रमाने वाले

    तू बेहतर से बेहतर और बरतर से बरतर है

    'बेदम' फ़तादः-ए-रह-ए-उम्मीद रा ब-बीं

    शाह-ए-हुस्न अज़ नज़र-ए-लुत्फ़-ए-सरमदी

    ‘बेदम6 तुम्हारी राह में उम्मीद के साथ पड़ा है

    हुस्न के बादशाह लुत्फ़-ए-सरमदी की नज़र फ़रमा

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-बेदम (पृष्ठ 129)
    • रचनाकार : बेदम शाह वारसी
    • प्रकाशन : सिद्दीक़ बुक डिपो, लख़नऊ

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