ऐ बादशाह-ए-हुस्न कि ज़ेबिंदः दिलबरी
ऐ बादशाह-ए-हुस्न कि ज़ेबिंदः दिलबरी
दर ख़ूबी-ए-जमाल ज़े-आलम तू दीगरी
ऐ हुस्न के बादशाह तू ख़ुश-नुमा दिलबर है
अपनी ख़ूबसूरती की ख़ूबी में तू दुनिया से बिलकुल अलग है
यारा-ए-मिदहत-ए-तू कि-रा ऐ वहीद-ए-अस्र
शान-ए-तू बरतर अस्त कि आल-ए-पयम्बरी
ऐ नाबिग़ा-ए-रोज़गार-ए-हस्ती तेरी ता’रीफ़ किस से हो सकती है
तेरी शान बरतर है क्यूँ कि तू आल-ए-पयम्बर है
अब्द-ए-ज़लील-ओ-ख़्वार-ओ-हक़ीर-ए-जहाँ मनम
बर मन निगाह-ए-लुत्फ़-ओ-करम कुन कि सरवरी
मैं ज़लील-ओ-ख़ार और बदनाम-ए-ज़माना ग़ुलाम हूँ
मुझ पर करम की निगाह कर क्यूँ कि तू सरवर-ओ-सरदार है
हुस्न-ए-अमल न-दारम व अज़ पा फ़तादःअम
दस्तम ब-गीर अज़ करम-ओ-बंदःपरवरी
मैं आ’जिज़-ओ-दर्मांदा हूँ, मेरे पास कोई नेक अ’मल नहीं है
ऐ बंदा-परवर अपने करम से मेरी दस्त-गीरी फ़रमा
लिल्लाह शाह-ए-'वारिस'-ए-आलम नवाज़ कुन
बर हाल-ए-ज़ार-ए-मा नज़र-ए-लुत्फ़-ए-सरसरी
ख़ुदा के लिए शाह-ए-वारिस-ए-आ’लम पर नवाज़िश कर
हमारी बुरी हालत पर-लुत्फ़ की नज़र फ़रमा
मा रा रसाँ ब-मंज़िल-ए-मक़सूद अज़ करम
गुमराह-ए-राह-ए-रास्तम ऐ ख़िज़्र-ए-रहबरी
अपने करम से हमें मंज़िल-ए-मक़्सूद तक पहुँचा
मैं राह-ए-रास्त से गुमराह हो चुका हूँ, ऐ ख़िज़्र मेरी रहबरी फ़रमा
आईना-वार शशदर-ओ-हैरान-ओ-मुज़्तरम
ब-नुमाए शक्ल-ए-ख़्वेश तू रश्क-ए-सिकंदरी
आईने की तरह मैं हैरान, शश्दर और मुज़्तरिब हूँ
ऐ रश्क-ए-सिकन्दर तू मुझे अपनी शक्ल दिखला
ऐ रह-नवर्द मंज़िल-ए-ख़ासान-ए-किबरिया
बेहतर ज़े-बेहतरी व तू बरतर ज़े-बरतरी
किबरिया की ख़ास मंज़िल तक क़दम-रंजा फ़रमाने वाले
तू बेहतर से बेहतर और बरतर से बरतर है
'बेदम' फ़तादः-ए-रह-ए-उम्मीद रा ब-बीं
ऐ शाह-ए-हुस्न अज़ नज़र-ए-लुत्फ़-ए-सरमदी
‘बेदम6 तुम्हारी राह में उम्मीद के साथ पड़ा है
ऐ हुस्न के बादशाह लुत्फ़-ए-सरमदी की नज़र फ़रमा
- पुस्तक : दीवान-ए-बेदम (पृष्ठ 129)
- रचनाकार : बेदम शाह वारसी
- प्रकाशन : सिद्दीक़ बुक डिपो, लख़नऊ
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