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ऐ दिल अर उक़बात बायद दस्त अज़ दुनिया ब-दार

हकीम सनाई

ऐ दिल अर उक़बात बायद दस्त अज़ दुनिया ब-दार

हकीम सनाई

MORE BYहकीम सनाई

    दिल अर उक़बात बायद दस्त अज़ दुनिया ब-दार

    पाक-बाज़ी पेशः गैर राह-ए-दीं कुन इख़्तियार

    हे मन! यदि तू उसे प्राप्त करना चाहता है तो संसार को त्याग दे और अन्तःकरण को शुद्ध करके उस धर्म मार्ग में आगे बढ़।

    ताज-ओ-तख़़्त-ए-मुल्क-ए-हस्ती जुम्ल: रा दरहम शिकन

    नक्श-ओ-मोहर-ए-नीस्ती-ओ-मुफ़्लिस बर जाँ निगार

    सिंहासन और ताज, राज्य और अस्तित्व सबको एक किनारे रख दे। भिखारी बन जा और यह समझ ले कि मैं कुछ हूँ ही नहीं।

    पाय बर दुनिया नेह बर दोज़ चश्म अज़ नाम-ओ-नंग

    दस्त दर उक़्बा ज़न बर बंद: राह-ए-फख़्र-ओ-आ'र

    इस संसार को ठुकरा दे, नाम और वैभव सबको लात मार कर आगे बढ़। तू अपने अभीष्ट पर ही ध्यान जमाए रख, प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा का कुछ विचार ही मत कर।

    चूँ ज़नान ता के नशीनी बर उमीद-ए-रंग-ओ-बूए

    हिम्मत अंदर राह बंद गाम ज़न मर्दानः-वार

    स्त्रियों के समान बनाव श्रृंगार करता हुआ कब तक वैठा रहेगा? मार्ग में आगे बढ़ने का साहस कर और पुरुषों के समान दृढ़ता से क़दम आगे बढ़ा।

    आलम-ए-सुफ़्ली जा-ए-तुस्त ज़ीं जा बरगुज़र

    जेहद आँ कुन ता-कुनी दर आलम-ए-उ'लवी क़रार

    यह नाशवान् संसार तेरे रहने योग्य नहीं है; अतएव यहाँ से चल दे और उस लोक में पहुँचने का प्रयत्न कर जिसके आगे अमर शब्द लिखा जाता है।

    ता गर्दी फ़ानी अज़ औसाफ-ए-ईं-सानी सक़र

    बे-नियाज़ी रा न-बीनी दर बहिश्त-ए-किर्दगार

    जब तक तू इस क्षणभंगुर जगत के मिथ्या बन्धनों को तोड़ कर शुद्ध हो जाएगा, तब तक तू ईश्वर के बनाए हुए उस स्वर्ग में शान्ति-पूर्वक नहीं रह सकता।

    गर चू बू-ज़र आरज़ू-ए-ताज-दारी रोज़-ए-हश्र

    बाश चूँ मंसूर-ए-हल्लाज इंतज़ार-ए-दार दार

    यदि तू मृत्यु के उपरान्त, उसके दरबार में पहुँच कर ताज पाने की इच्छा रखता है, जिस प्रकार कि बूज़र ने किया था, तो मन्सूर के समान अपने आपको मिटा कर उसका अधिकारी बनने का प्रयत्न कर।

    अज़ हदीस-ए-इश्क़-ए-जाँबाजाँ म-ज़न बर ख़ीरः लाफ़

    ता तू अंदर बंद-ए-इश्क़-ए-ख़्वेश मान्दी उस्तुवार

    अपने आपको सबसे पहले मिटा डाल, तब सच्चे प्रेमियों के प्रणय की बातें करके अभिमान दिखा। यदि ऐसा नहीं कर सकता है तो अभिमान करना भी व्यर्थ है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-सनाई (पृष्ठ 141)
    • रचनाकार : हकीम सनाई
    • प्रकाशन : मर्कज़-ए-पख़्श:मोअस्सःमोअस्सः-ए-इंतिशारात-ए-निगाह, ईरान (2002)

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