बाँग ज़दम नीम-शबाँ कीस्त दरी ख़ानः-ए-दिल
बाँग ज़दम नीम-शबाँ कीस्त दरी ख़ानः-ए-दिल
गुफ़्त मनम कज़ रूख़-ए-मन शुद मह-ओ-ख़ुर्शीद ख़जिल
आधी रात को मैंने डपट कर पूछा, मेरे हृदय रूपी घर में कौन है?
उस प्रियतम ने उत्तर दिया, मैं हूँ जिसके मुख की आभा से सूर्य और चन्द्र प्रकाशित हो रहे हैं।
गुफ़्त कि ईं ख़ानः-ए-दिल पुर हमः नक़्शस्त चरा
गुफ़्तम कि अक्स-ए-तू अस्त ऐ रुख़-ए-तू रश्क चगिल
उसने पूछा, इस घर में यह बहुत सी सूरतें क्यों दिखलाई पड़ रही हैं?
मैंने उत्तर दिया, ऐ चुगल (चीन देश का एक प्रान्त जहाँ के मनुष्य बहुत रूपवान होते हैं) इस दीपक पर तेरे मुख का प्रतिबिम्ब पड़ रहा है।
गुफ़्त कि ईं नक़्श-ए-दिगर चीस्त पुर अज़ ख़ून-ए-जिगर
गुफ़्तम कि नक़्श-ए-मन-ए-ख़स्त:-दिल-ओ-पा-ए-ब-गिल
उसने पूछा कि जिगर के खून में डूबी हुई यह एक और तस्वीर किस की है?
मैंने उत्तर दिया, यह घायल और विपत्तियों में पड़े हुए दिल का चित्र है।
बस्तम मन गरदन-ए-जाँ बुर्दम पेशश ब-निशाँ
मुजरिम-ए-इश्क़स्त मकुन मुजरिम-ए-ख़ुद रा तु बहिल
मैंने प्राणों की गर्दन बाँधी और उसके सम्मुख ले गया,
ले, यह तुझमें प्रेम करने का अपराधी है। इसको क्षमा न कर।
दाद सर-रिश्तः ब-मन रिश्त:-ए-पुर-फित्ना:-ओ-फ़न
गुफ़्त ब-कुश ता ब-कुशम हम ब-कुश-ओ-हम-म-गसिल
उसने रस्सी का सिरा, जो कि चालाकियों और झूट से भरा था,
मेरे हाथ में दे कर कहा कि इसे खींच जिससे मैं भी खिंचूँ, परन्तु इसे तोड़ना मत।
ताफ़्त अज़ाँ ख़रग:-ए-जाँ सूरत-ए-तुर्कम ब अज़ आँ
दस्त ब-बुर्दम सूरत-ए-ऊ दस्त-ए-मरा ज़द कि बहिल
उस प्राण के तम्बू से मेरे प्यारे का मुख और भी अधिक लावण्यमय प्रतीत हुआ।
मैंने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया। उसने हाथ हटाकर कहा, बस हाथ न लगाना।
गुफ़्तम तू हम चूँ फुलाँ तुर्श शुदी गुफ़्त बदाँ
मन तुर्श-ए-मस्लहतम ने तुर्श-ए-कीन:-ओ-ग़िल
मैंने कहा कि अमुक पुरुष जिस प्रकार मुझसे रुष्ट हो गया था उसी प्रकार तू भी क्यों होने लगा है।
वह बोला कि तुझे नहीं मा’लूम इस रूठने में भी एक ख़ास भेद है। मैं शत्रुता और बैर से नहीं बिगड़ता हूँ।
हर कि दर आयद कि मनम बर सर-ए-शाख़श ब-ज़नम
कीं हरम-ए-इश्क़ बुवद ऐ हैवाँ नीस्त अग़िल
जो यहाँ अहंकार के साथ आता है उसकी जड़ मैं काट (उसे मैं पंगु बना) देता हूँ।
यह प्रेम का तीर्थस्थान है, वासना रहित पवित्र है। जानवरों के चरने का स्थान नहीं है।
हस्त सलाह-ए-दिल-ओ-दीं सूरत-ए-आँ तर्क-ए-यक़ींं
चश्म-ए-फ़िरौ माल व ब-बीं सूरत-ए-दिल सूरत-ए-दिल
उस प्रियतम का मुख ही इस हृदय की कोठरी की सजावट है।
तनिक आँखें मलकर देख कि तेरे दिल में ही दिल कितना चमत्कृत हो रहा है।
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