रौनक़-ए-अय्याम-ए-जवानीस्त इश्क़
माय:-ए-काम-ए-दो-जहानीस्त इश्क़
प्रणय युवावस्था की शोभा है और दोनों जहानों के उद्देश्यों का सार है।
मैल-ए-तहर्रुक ब-फ़लक इश्क़ दाद
ज़ौक़-ए-तजर्रुद ब-मलक इश्क़ दाद
मन और प्राण में जब प्रणय का प्रकाश पहुँचा तब उन दोनों ने मिट्टी तथा शरीर से सम्बन्ध जोड़ लिया।
चूँ गुल-ए-जाँ बू-ए-तअस्शुक़ गिरफ़्त
बा गिल-ए-तन रंग-ए-तअल्लुक़ गिरफ़्त
हमारे शरीर तथा प्राणों के बीच केवल यही एक बन्धन है और इसी के बल पर हम मरते तथा जीते हैं।
राब्त:ए-जान-ओ-तन-ए-मा अज़ूस्त
मुर्दन-ए-मा ज़ीस्तन-ए-मा अज़ूस्त
ऐ प्रणयी! तेरा काम सुन्दरियों ने बिगाड़ रक्खा है और उनके तीखे कटाक्षों का शिकार बनकर तुझे सहस्रों विपत्तियों का सामना करना पड़ रहा है।
उल्वी-ओ-सिफ़्ली हम: बंद-ओ-यंद
पस्त शौ क़द्र-ए-बुलंद-ओ-यंद
मह कि ब-शब नूदही याफ़्तः
परतवे अज़ मेहर बर ऊ ताफ़्त:
ख़ाक ज़े-गरदूँ न बुवद ताबनाक
ता असर-ए-मेह्र न-युफ़्तद ब-ख़ाक
चूँ ब-तन आज़ाद ज़े-मेहरस्त दिल
संग-ए-सियाहस्त दराँ तीरः गिल
हर कि न दर आतिश-ए-इश्क़स्त ग़र्क़
अज़ दिल-ए-ऊ ता ब-सनोबर चे फ़र्क़
कार-ए-सनोबर चे बुवद ग़ाफ़िले
अज़ ग़म-ए-इश्क़ ऊ कि व साहेबदिले
ज़िंदगी-ए-दिल ब-ग़म-ए-आशिक़ीस्त
तारिक-ए-जाँ बर क़दम-ए-आशिक़ीस्त
ता न-शवद इश्क़ ब-दिल पर्दगी
गर्मी-ए-दिल नीस्त जुज़ अफ़्सुर्दगी
ऐ शुद: कार-ए-तू बद अज़ नेकवाँ
जुफ़्त-ए-सद-अन्दोह ज़े-ताक़ अबरुवाँ
- पुस्तक : मसनवी हफ़्त औरंग भाग - 1 (पृष्ठ 541)
- रचनाकार : अब्दुर्रहमान जामी
- प्रकाशन : मरकज़-ए-मुतालिआत-ए-ईरानी, ईरान (1999)
- संस्करण : First
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