दस्त अज़ तलब न-दारम ता काम-ए-मन बर आयद
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
दस्त अज़ तलब न-दारम ता काम-ए-मन बर आयद
या तन रसद ब-जानाँ या जाँ ज़े-तन बर आयद
मैं तलब से दस्त-बरदार न हूँगा जब तक कि मक़सद पूरा न हो
या जान-ए-जानाँ तक पहुंचे या जान जिस्म से निकल जाए
जाँ बर लब अस्त व हसरत दर दिल कि अज़ लबानश
न-गिरफ़्त: हेच काम-ए-जाँ अज़ बदन बर आयद
जान होंटों पर है और हसरत-ए-दिल में कि उस के होंटों से
कोई मक़सद पूरा किए बग़ैर जिस्म से जान निकलती है
अज़ हसरत-ए-दहानश जानम ब-तंग आमद
ख़ुद काम-ए-तंग-दस्ताँ कि ज़ाँ दहन बर आयद
तेरे मुँह की हसरत से मेरी जान तंग आ गई है
मुफ़लिसों का मक़सद उस मुँह से कब पूरा होगा
ब-नुमाए रुख़ कि ख़ल्क़-ए-वालिह शवंद-ओ-हैराँ
ब-कुशाए-लब कि फ़र्याद अज़ मर्द-ओ-ज़न बर आयद
रुख़ दिखा दे कि लोग दीवाना और हैरान हो जाएं
होंट हिला, ताकि मर्दो-ओ-ज़न फ़रियाद करें
गुफ़्तम ब-ख़्वेश कज़ वै बर गीर दिल दिलम गुफ़्त
कार कीस्त ईं कू बा ब-ख़्वेशतन बर आयद
मैंने अपने आपसे कहा कि उस से दिल हटा ले, मेरा दिल बोला
ये काम तो उस का है जिसको अपने ऊपर क़ाबू हो
ब-कुशाए तुरबतम रा बाद अज़ वफ़ात-ओ-ब-निगर
कज़ आतिश-ए-दरूनम दूद अज़ कफ़न बर आयद
मरने के बाद, मेरी क़ब्र खोल और देख
कि मेरी अंदुरूनी आग की वजह से कफ़न से धुआँ निकल रहा है
बर बू-ए-आँ कि दर बाग़ आयद गुले चु रूयत
आयद नसीम हर-दम गिर्द-ए-चमन बर आयद
इस उम्मीद पर कि बाग़ में तेरे चेहरे जैसा कोई फूल खिले
नसीम आती है और हर वक़्त चमन में चारों तरफ़ चक्कर काटती है
हर यक शिकन ज़े-ज़ुल्फ़त पंजाह-ओ-शश्त दारद
चूँ ईं दिल-ए-शिकस्तः बा-आँ शिकन बर आयद
तेरी ज़ुल्फ़ की हर शिकन पच्चास हलक़े रखती है
ये टूटा हुआ दिल उस शिकन से किस तरह निकले
बर-ख़ेज ता-चमन रा अज़ क़ामत-ओ-मियानत
हम सर्व दर बर आयद हम ना-रवन बर आयद
उठ! ताकि चमन के लिए तेरे क़द और कमर से
सर्व भी बग़ल में आए और नारवन भी मिल जाए
हर-दम चु बेवफ़ायाँ न-तवाँ गिरफ़्त यारे
माऐम-ओ-आस्तानश ता-जाँ ज़े-तन बर आयद
बे-वफ़ाओं की तरह हर वक़्त एक नया दोस्त नहीं बनाया जा सकता
हम हैं और उस की चौखट जब तक जिस्म से जान निकले
गोयन्द ज़िक्र-ए-ख़ैरश दर ख़ैल-ए-इश्क़-बाज़ाँ
हर-जा कि नाम-ए-'हाफ़िज़' दर अंजुमन बर आयद
उस का ज़िक्र-ए-ख़ैर इ’श्क़-बाज़ों के गिरोह में करते हैं
अंजुमन में जिस जगह ‘हाफ़िज़’ का नाम आता है
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