दोश लाल-ए-तू मरा ता-ब-सहर मेहमाँ दाश्त
रोचक तथ्य
अनुवाद: अमारा अली
दोश लाल-ए-तू मरा ता-ब-सहर मेहमाँ दाश्त
मुर्द:-ए-हिज्र ज़े-बू-ए-तू हमः शब जाँ दाश्त
कल सहर तक मैं तुम्हारे होठों का मेहमान था हिज्र का मारा हुआ तुम्हारी ख़ुशबूओं से रात भर ज़िंदा रहा.
रु-ए-तू दीदम व शुद दर्द फ़रामोश मरा
सीनः कज़ नावक-ए-हिज्रत ब-जिगर पैकाँ दाश्त
मैं ने तुम्हारा चेहरा देखा और दर्द भूल गया, तुम्हारे हिज्र के तीर से मेरा जिगर छलनी था.
दिल-ए-मन गरचे ब-बेदाद शुद अज़ ज़ुल्फ़-ए-तू तंग
मुल्क-ए-ऊ शुद कि ज़े-सुल्तान-ए-रुख़्त फ़रमाँ दाश्त
मेरा दिल अगर्चे उसके साथ ज़ुल्फ़ के हाथों बे-इंसाफ़ी होई तुम्हारे रुख़्सार उसका इलाक़ा थे और तुम्हारे हुक्म के ताबे.
बाज़ बा ज़ुल्फ़-ए-तू बद-ख़ू शुद व इनक पस अज़ीं
दिल-ए-दीवानः ब-ज़ंजीर-ए-निगह न-तवाँ दाश्त
फिर उसने तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साथ बद-तमीज़ी की और अब इसके बाद पागल दिल को ज़ंजीर से भी क़ाबू नहीं किया जा सकता.
ऐ कि गोई तू कि दर पेश-ए-सनम सज्दः चे शुद
ईं बदाँ गोए कि आँ दम ख़बर अज़ ईमाँ दाश्त
तुम जो कहते हो कि सनम के सामने सजदा किया हुआ यह उसे कहो जिसको उस वक़्त ईमान हो
नज़रे कर्दम व दुज़्दीद: मरा जाँ बख़शीद
कज़ रक़ीबान-ए-ख़ुनुक दुज़दी-ए-मन पिन्हाँ दाश्त
मैं ने उसकी तरफ़ देखा और उसने आँख बचा कर मुझे ज़िंदा कर दिया. क्योंकि वह रक़ीबों से मेरी यह चूरी छुपा कर रखना चाहता था.
'ख़ुसरव' इमशब शरफ़-ए-बंदगी-ए-जानाँ याफ़्त
मगस इमरोज़ सर-ए-माएदः-ए-सुल्ताँ दाश्त
आज रात ‘ख़ुसरो’ को अपने महबूब की बंदगी का शर्फ़ हासिल हुआ आज मक्खी बादशाह के दस्तरख़्वान पर थी.
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