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Sufinama

गुफ़्ता कि कीस्त बर दर गुफ़्तम कमीं ग़ुलामत

रूमी

गुफ़्ता कि कीस्त बर दर गुफ़्तम कमीं ग़ुलामत

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    गुफ़्ता कि कीस्त बर दर गुफ़्तम कमीं ग़ुलामत

    गुफ़्ता चे कार दारी गुफ़्तम महा सलामत

    प्यारे ने पूछा कि द्वार पर कौन हैं। मैंने उत्तर में कहा, तेरा एक तुच्छ सेवक।

    उसने पूछा कि यहाँ क्यों आया है। मैंने उत्तर दिया, मन-मोहन! तेरी अभ्यर्थना करने।

    गुफ़्ता कि चंद रानी गुफ़्तम कि ता ब-ख़्वानी

    गुफ़्ता कि चंद जोशी गुफ़्तम कि ता-क़यामत

    उसने पूछा कब तक आवारा फिरता रहेगा। मैंने उत्तर दिया, जब तक तु बुलाएगा।

    उसने पूछा तू कब तक अपना जोश दिखाता रहेगा। मैंने कहा, प्रलय तक।

    दा'वा-ए-इश्क कर्दम सौगंद हा ब-ख़ुर्दम

    कज़ 'इश्क़ यावः कर्दम मन मुल्कत-ओ-शहामत

    मैंने उसके सम्मुख उसके प्रति अपने हृदय का प्रेम दर्शाया और यमदुत सी शपथें उठाई।

    कहा कि देख तेरे प्रणय में पड़कर मैंने अपनी प्रतिष्ठा और राज पद का परित्याग कर दिया है।

    गुफ़्ता बराए दा'वा क़ाज़ी गवाह ख़्वाहद

    गुफ़्तम गवाह अश्क़म ज़र्दी-ए-रुख़ अलामत

    प्रियतम ने कहा, न्यायाधीश अभियोग के प्रमाण स्वरूप साक्षी चाहता है। मैंने उत्तर दिया, मेरे अश्रु बिन्दु साक्षी हैं और मुख पर की ज़र्दी प्यार की निशानी है।

    गुफ़्ता गवाह जरहस्त तर-दामन-अस्त चश्मत

    गुफ़्तम ब-फ़र्र-ए-अ'दलत अ'दलन्द-ओ-बे-ग़रामत

    उसने कहा, “साक्षी अविश्वासी है, तेरी आँख से ही अपराध, तेरे कथन की असत्यता प्रगट होती है।

    मैंने उत्तर दिया, तेरी न्याय-प्रियता से अब वह विश्वासी हैं। उनमें किसी प्रकार की कालिमा नहीं है।

    गुफ़्ता चे अज़्म दारी गुफ़्तम वफ़ा-ओ-यारी

    गुफ़्ता ज़े-मन चे ख़्वाही गुफ़्तम कि लुत्फ़-ए-आ'मत

    उसने कहा, फिर किस बात की चाह है। मैंने कहा कि तेरे साथ रहने और सच्चे दिल से सेवा करने की।

    उसने पूछा, यह सब कुछ है परन्तु मुझसे किस बात की आशा रखता है। मैंने कहा, केवल तेरी उस कृपा की जो दूसरों के लिये भी है।

    गुफ़्ता कि बूद हमराह गुफ़्तम ख़्यालत-ए-शाही

    गुफ़्ता कि ख़्वानदत ईं जा गुफ़्तम कि बू-ए-जामत

    उसने पूछा, तेरे साथ में और कौन था? मैंने कहा, हे सम्राट। तेरा ध्यान। उसने कहा, तुझे यहाँ तक खींच कौन लाया है?” मैंने कहा, तेरे प्याले की कामना।

    गुफ़्ता कुजास्त ख़ुश-तर गुफ़्तम कि क़स्र-ए-क़ैसर

    गुफ़्ता चे दीदी आँ जा गुफ़्तम कि सद करामत

    उसने कहा, सबसे अच्छा रमणीक स्थान कौन है? मैंने कहा, “सम्राट का भवन।

    उसने पूछा, तुझे वहाँ क्या प्राप्त हुआ है?” मैंने उत्तर दिया, “सैकड़ों प्रतिष्ठाएँ।

    गुफ़्ता चरास्त ख़ाली गुफ़्तम ज़े-बीम-ए-रहज़न

    गुफ़्ता कि कीस्त रहज़न गुफ़्तम कि ईं मलामत

    उसने पूछा, तू ख़ाली हाथ क्यों आया है? मैंने कहा, चोर के भय से। उसने कहा, उस डाकू का नाम बतला सकते हो!” मैंने उत्तर दिया, उसका नाम है तेरे प्रणय में लोगों की बदनामी।

    गुफ़्ता कुजास्त ऐमन गुफ़्तम ब-ज़ोहद-ओ-तक़्वा

    गुफ़्ता कि ज़ोहद चे बूवद गुफ़्तम रह-ए-सलामत

    उसने पूछा, फिर वह स्थान कौन है जहाँ किसी प्रकार का भय नहीं है। मैंने कहा, पवित्रता और विवेक।

    उसने पूछा विवेक क्या वस्तु है? मैंने कहा कुशलत्व का मार्ग।

    गुफ़्ता कुजास्त आफ़त गुफ़्तम ब-कू-ए-इश्क़त

    गुफ़्ता चे गोनी आँ-जा गुफ़्तम दर इस्तक़ामत

    उसने पूछा, विपत्तियाँ कहाँ हैं? मैंने कहा, तेरे प्रेम-पथ में।

    उसने पूछा, तू वहाँ किस अवस्था में है?” मैंने कहा, बहुत ही दृढ़ और सावधान हूँ।

    बिस्यार आज़मूदम अम्मा न-बूद सूदम

    मन जर्रब-अल-मुजर्रब हल्लत बिहिन्नदामत

    मैंने बहुत तरह से उसकी परीक्षा लेनी चाही। परन्तु मुझे कोई लाभ हुआ।

    जो मनुष्य किसी ऐसे की परीक्षा लेना चाहता है जो उसमें उत्तीर्ण हो चुका है तो उसे केवल कष्ट ही प्राप्त होता है।

    ख़ामोश गर ब-जोयम मन नुक़्ताहा-ए-ऊ रा

    अज़ ख़ेशतन बराई दर कशद बामत

    बस अब यहीं ठहर जा। यदि मैं उसके रहस्यों का उद्घाटन करेगा तो

    तू अपने आपको भूल जाएगा और तुझे किसी वस्तु का ज्ञान रहेगा।

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