गुफ़्तमश ऐ ख़िज़्र-ए-मसीहा-नफ़स
ख़िज़्र-ओ-मसीहा तुई इमरोज़-ओ-बस
मैंने उससे कहा कि हे मेरे पथ प्रदर्शक! यदि आज संसार में मेरा कोई शुभेच्छु अथवा उत्तम पथ पर चलाने वाला है, तो वह केवल आप ही हैं।
अज़ क़दमत सब्ज़:-ए-ऐशम दमीद
वज़ नफ़सत ज़ौक़-ए-हयातम रसीद
आपके चरणों के स्पर्श से मेरा जीवन रूपी पौधा लहलहाने लगा। आपके वचनों से मुझे जीवन का आनन्द प्राप्त हो गया।
ऐ'न-ए-शिफ़ा शुद ज़े-तू बीमारीयम
बेह ज़े-सद-इत्लाक़ गिरफ़्तारियम
आपकी कृपा से मेरा रोग आरोग्यता में परिवर्तित हो गया और अब मेरे बन्धन सहस्रों स्वतंत्रताओ सें बढ़कर हैं।
सेहत-ए-मन दौलत-ए-दीदार-ए-तुस्त
शरबत-ए-मन लज़्ज़त-ए-गुफ़्तार-ए-तुस्त
आपके कारण मुझे जितनी बातें ज्ञात हुई हैं वह वाद विवाद अथवा अनुमान के सहारे नहीं मा’लूम की जा सकतीं।
रु-ए-तू शुद हुज्जत-ए-ईमान-ए-मन
नूर-ए-यक़ी ज़द अलम अज़ जान-ए-मन
आंचे रसीद अज़ तू ब-जान-ए-सक़ीम
बाशद अज़ाँ हुज्जत-ओ-बुरहान-ए-अक़ीम
व आंचे शुदम अज़ तू बा-आँ रह-शनास
मुन्तज-ए-आँ नीस्त दलील-ओ-क़यास
बर मन अज़ींं पस ग़म-ओ-बारे न-मांद
बर रुख़-ए-मक़सूद ग़ुबारे न-मांद
लेक अज़ीं बीम ज़े-पा उफ़्तम
कज़ तू मबादा कि जुदा उफ़्तम
- पुस्तक : मसनवी हफ़्त औरंग भाग - 1 (पृष्ठ 493)
- रचनाकार : मुल्ला जामी
- प्रकाशन : मरकज़-ए-मुतालिआत-ए-ईरानी, ईरान (1999)
- संस्करण : First
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