हर नक़्श रा कि दीदी जिन्स-अश ज़े-ला-मकानस्त
हर नक़्श रा कि दीदी जिन्स-अश ज़े-ला-मकानस्त
गर नक़्श रफ़्त ग़म नीस्त अस्लश चु जावेदानस्त
रूप के मिट जाने का क्या शोक जब कि उसका तत्व अस्थायी है।
जो दिखता है, उसकी वास्तविकता किसी विशिष्ट स्थान पर नहीं होती स्वरूप के लोप का दुःख कैसा, जब सार ही क्षणभंगुर है।
हर सूरते कि दीदी हर नुक्तः कै शनीदी
बद-दिल म-शो कै रफ्ताँ ज़ीराना आँ चुनान-अस्त
अतएव जो रूप आँखों के समक्ष है और उसके विषय में जो रहस्य सुनाई पड़ता है,
उसके खो जाने अथवा विलुप्त हो जाने पर खेद मत करो।
चूँ अस्ल-ए-चश्मः बाक़ीस्त फरअ'श हमेश: साक़ीस्त
चूँ हर दो बे-ज़वाल-अन्द अज़ चे तुरा फुग़ानस्त
सोते में जब तक जलधारा प्रवाहित रहती है उसको नालियाँ पानी देती रहती हैं और
फिर जब सोता और उसकी नालियाँ चिरस्थायी हैं तो तुम्हें चिल्लाने की क्या आवश्यकता है?
जाँ रा चु चश्मः-ए-दाँ वीं सुनअ'हा चू जू-हा
ता-चश्मः हस्त बाक़ी जू-हा अज़-ऊ रवानस्त
परमेश्वर एक सोते के सदृश है और उसके निर्मित रूप नालियों के समान हैं।
जब तक चश्मा रहेगा, नालियाँ उस समय तक उस में से निकलती रहेंगी।
ग़म रा बरूँ कुन अज़ आब-ए-जू हमीं ख़र
अज़ फ़ौत-ए-आब-मन्देश कीं आब-ए-बे-करानस्त
तू चिन्ता न कर और इन नालियों का जल पान करता रह।
यह विचार मत कर कि पानी न रहेगा, चश्मे में अथाह पानी भरा हुआ है।
ज़ाँ दम कै आमदस्ती अंदर जहान-ए-हस्ती
पेशत कै ता बरसती ब-निहादः नर्दबानस्त
तू जब से इस संसार में आया है तेरी उत्पत्ति के समय
से ही तेरे सम्मुख उन्नति की सीढ़ी रक्खी हुई है।
अव्वल जमाद बूदी आख़िर नबात गश्ती
आँ गह शुदी तू हैवाँ ईं वर तू चूँ निहान-अस्त
तू पहले पत्थर था, फिर पौधा हुआ और
फिर पशु के रूप में परिणित हो गया, परन्तु तुझ पर यह भेद प्रगट क्यों नहीं हुआ?
गश्ती अज़ाँ पल इंसाँ बा-इल्म-ओ-अक़्ल-ओ-ईमाँ
बिनिगर चे गिल शुद आँ तन कू जुज़्व-ए-ख़ाक़दानस्त
पशु से तुझे एक सत्यवादी और विद्वान् मनुष्य का रूप मिला
देख, मिट्टी का एक ढाँचा कितना सुन्दर सुमन बन गया है
ज़े-इन्साँ चु सैर कर्दी बे-शक फ़रिश्ता गर्दी
बे ईं ज़मीं अज़ाँ पस जायत बर आसमान-अस्त
मनुष्य की अवस्था से यदि आगे बढ़ा तो तू निस्सन्देह देवता हो जाएगा
और तेरा निवास आकाश में होगा, पृथ्वी छूट जाएगी।
बाज़ अज़ फरिश्तगी हम ब-गुज़र बरो दराँ-यम
ता-क़त्रः-ए-तू बहरे गर्दद कि सद अमानस्त
फिर इस अवस्था को भी छोड़ कर उस समुद्र से जा मिला जो अत्यन्त विशाल है,
ताकि एक बूँद के स्थान पर तू एक ऐसी नदी बन जाए जो सैकड़ों नदियों से बढ़कर है।
ब-गुज़र अज़ीं बलद तू मी-गो ज़े-जान-ए-अहद-ए-तू
गर पीर गश्त जसुमत चे ग़म चूँ जाँ जवानस्त
अब इस जन्म के चक्कर में न पड़ कर प्राण से जाकर मिल जा और उससे कह कि
तेरा शरीर वृद्ध हो गया है परन्तु तू इसकी चिन्ता मत कर, जीव तो तेरा अभी युवक ही है।
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