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हिकायत-ए-बुलबुल बा बाज़

निज़ामी गंजवी

हिकायत-ए-बुलबुल बा बाज़

निज़ामी गंजवी

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    दर चमन बाग़ चू गुलबुन शगुफ़्त

    बुलबुल बा बाज़ दर आमद ब-गुफ्त

    जिस समय उपवन में गुलाब के पुष्प खिल रहे थे, बुलबुल और बाज़ में इस प्रकार बातचीत हुई।

    कज़ हम: र्मुग़ान-ए-तु ख़ामोश साज़

    गोए चेरा बूर्द:ई आख़िर ब-बाज़

    बुलबुल ने बाज़ से कहा कि तू सब पक्षियों में बड़ा है। परन्तु कभी बोलता नहीं। इसका क्या कारण है?

    ता तू लब-बस्तः कुशादी नफ़स

    यक सुख़न-ए-नग़्ज़ न-गुफ़्ती ब-कस

    तूने जब से इस संसार में जन्म लिया है, उस समय से अभी तक एक भी अच्छी बात मुख से नहीं निकाली।

    मंज़िल-ए-तू दस्त-गह-ए-सनजरी

    तो'म:-ए-तू सीन:-ए-कब्क-ए-दरी

    संजर बादशाह के हाथ पर तू बैठा रहता है और पहाड़ी चकोर के कलेजे को खाता है। पर इस पर भी चुप है।

    मन कि ब-यक चश्म ज़द अज़ कान-ए-ग़ैब

    सद-गोहर-ए-नग़्ज़ बर आरम ज़े-जेब

    मुझे देख, कितनी बोलने वाली हूँ। एक साँस में सैकड़ों मोती के समान सुन्दर शब्द कह डालती हूँ।

    तो'म:-ए-मन किर्म-ए-शिकारी चरास्त

    ख़ान:-ए-मन बर सर-ए-ख़ारे चेरास्त

    फिर क्या कारण है कि छोटे छोटे कीड़ों से मैं अपना पेट भरती हूँ और काँटों पर विश्राम करती हूँ।

    बाज़ बदो गुफ़्त हम: गोश-बाश

    ख़ामोशीम बिंगिर-ओ-ख़ामोश बाश

    मुझे केवल थोड़ा ही सा काम करना आता है। इस पर भी मैं सौ काम करता हूँ, परन्तु बखान एक का भी नहीं करता हूँ।

    मन कि शुदम कारशनास अंदकै

    सद कुनम बाज़ न-गोयम यके

    तुझे संसार ने प्रसिद्ध कर रखा है। तेरा प्रेम प्रसिद्ध है। तू काम एक भी नहीं करती परन्तु बातें बनाने में एक ही है।

    रौ कि तुई शेफ़्त:-ए-रोज़गार

    ज़ाँ-कि यके कुनी गोई हज़ार

    मैं बिल्कुल भीतरी विचार रखने वाला हूँ और इसीलिये यह संसार जो एक प्रकार से आखेट का स्थान है मुझे बादशाह के हाथ से चकोर का सीना खिलवाता है।

    मन कि हम: मा'नीयम ईं सैद-गाह

    सीन:-ए-कब्कम देहद दस्त-ए-शाह

    मस्जिदों में बादशाह के नाम का ख़ुतबा (प्रार्थना) पढ़ा जाता है कि डंके की चोट का।

    प्रभात के पास केवल एक आवाज़ है और वह है मुर्ग की। इसीलिये वह खेद के साथ हँस कर रह जाता है।

    चूँ तू हम: ज़ख़्म-ए-ज़बानी-ए-तमाम

    किर्म ख़ुर-ओ-ख़ार-नशीं वस्सलाम

    ऊँचे दर्जे की कविता करने में ख्याति प्राप्त कर। कहीं निज़ामी के समान, इसी कारण से, तू भी एक नगर में नज़र-बन्द कर दिया जावे।

    ख़ुत्बः चू बर नाम-ए-फ़रीदूँ कुनंद

    गोश बर आवाज़-ए-दुहुल चूँ कुनंद

    सुब्ह कि बा बाँग-ए-ख़़रूसस्त-ओ-बस

    ख़ंदः-ई ज़न अज़ राह-ए-फ़सुनस्त-ओ-बस

    चर्ख़ कि दर मा'रीज़-ए-फ़रियाद नीस्त

    हेच सर अज़ चम्बरश आज़ाद नीस्त

    बर मकश आवाज़:-ए-नज़्म-ए-बुलंद

    ता चू 'निज़ामी' न-शवी शहर-बंद

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