कर्द चू आँ बंद गुशाई मरा
दाद ज़े-हर-बंद रिहाई मरा
जब पीर ने यह रहस्य मेरे सन्मुख प्रकट कर दिया, मेरे सभी बन्धन ढीले हो गये।
रिश्तः-ए-मन अज़ गिरह-ए-क़ैद रस्त
बर गिरहम गौहरे इतलाक़ बस्त
कारागार से मुझे मुक्ति प्राप्त हो गई और सभी प्रकार की वस्तुओं से मेरा सम्बन्ध छूट गया। हृदय में विश्वास आ गया।
क़त्रः-ए-नाचीज़ ब-बह्र आरमीद
हस्ती-ए-ख़ुद रा हमगी बह्र दीद
अस्तित्व हीन बूँद समुद्र में मिल गया और अपने जीवन रूपी सरिता की सैर भी कर ली।
दर सोवर-ए-बह्र चू मौज-ओ-बुख़ार
याफ़्त हमः जल्वः-ए-ख़्वेश आश्कार
समुद्र के विभिन्न रूपों में, आनन्द-मयी लहर के समान, सभी स्थानों में अपने ही को पाया।
चूँ पय-ए-गौहर सू-ए-दरिया शिताफ़्त
हेच गुहर जुज़ गुहर-ए-ख़ुद न याफ़्त
सैर करने के लिये स्थान की खोज की तो वही समुद्र दृष्टि में आया।
चूँ ब-तमाशा सू-ए-ख़ुद ब-निगरीस्त
हेच न दानिस्त कि जुज़ बह्र चीस्त
तो अब इसी के गर्भ में डुबकी लगा और उसी ख़ास मोती और लाल की खोज कर।
'जामी' अगर ज़ाँ कि ज़दी दस्त-ओ-पा
ता कि बदीं बह्र शुदी आश्ना
तू प्रेम की मस्ती की लपटों में जलकर मरने के लिये उद्यत् हो जा।
ग़र्क़-ए-बह्र आमदः ग़व्वास शौ
तालिब-ए-दुर्र-ओ-गोहर-ए-ख़ास शौ
दर दिलत अगर शो'लः हालीत हस्त
लायक़-ए-आँ हुस्न मक़ालीत हस्त
सोख़्तः-ए-शो'लः-ए-हालात बाश
साख़्तः-ए-शरह-ए-मक़ालात बाश
- पुस्तक : मसनवी हफ़्त औरंग भाग - 1 (पृष्ठ 497)
- रचनाकार : मुल्ला जामी
- प्रकाशन : मरकज़-ए-मुतालिआत-ए-ईरानी, ईरान (1999)
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