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Sufinama

ख़बरत हस्त कि दर मिस्र शकर अर्ज़ां शुद

रूमी

ख़बरत हस्त कि दर मिस्र शकर अर्ज़ां शुद

रूमी

MORE BYरूमी

    ख़बरत हस्त कि दर मिस्र शकर अर्ज़ां शुद

    ख़बरत हस्त कि दै गुम शुद-ओ-ताबिस्ताँ शुद

    ख़बर ये है कि मिस्र में शकर सस्ती हो गई है

    ख़बर ये है कि जाड़े का मौसम गुज़र गया है और गर्मी गई है

    ख़बरत हस्त कि बुलबुल ज़ सफ़र बाज़ आमद

    दर समा' आमद-ओ-उस्ताद-ए-हमः मुर्ग़ां शुद

    ख़बर ये है कि बुलबुल सफ़र से वापस गई है

    वो अब समा’ में मसरूफ़ है और तमाम परिंदों की उस्ताद हो गई है

    ख़बरत हस्त कि दर बाग़ कनूँ शाख़-ए-दरख़्त

    मुज़्दः-ए-नौ बशनीद अज़ गुल-ओ-दस्त-ए-अफ़्शाँ शुद

    ख़बर है कि अब बाग़ में दरख़्त की डाली ने फूल से

    नई ख़ुश-ख़बरी सुनी है और वो रक़्स कर रही है

    ख़बरत हस्त कि जाँ मस्त शुद अज़ बू-ए-बहार

    सर्व-ए-ख़ुश रक़्स-कुनाँ दर हरम-ए-सुल्ताँ शुद

    ख़बर है कि बहार की ख़ुशबू से जान मस्त हो गई है और

    सर्व-ए-रक़्स करते हुए हरम का सुल्तान बन गया है

    गुल-रुख़ाने ज़ 'अदम रक़्स-कुनाँ आमद:-अंद

    कंजुम-ए-चर्ख़ निसार-ए-क़दम-ए-ईशाँ शुद

    फूल जैसे चेहरे वाले लोग ’अदम से रक़्स करते आए हैं

    आसमान के सितारे उनके क़दमों में निसार हो गए हैं

    गुफ़्त बस कुन कि मन ईं रा ब-अज़ीं शर्ह देहम

    मन दहाँ बस्तम ईं राज़-ए-अज़ाँ पिन्हाँ शुद

    उस ने कहा कि ख़ामोश रहो, मैं इस की तशरीह करता हूँ

    मैंने अपनी ज़बान बंद कर ली, उस ने सारा राज़ ज़ाहिर कर दिया

    'शम्स'-तबरेज़ चू ब-नुमूद गुल-ए-रुख़्सारत

    बुलबुल-ए-जाँ ज़ शग़फ़ आमद-ओ-दर अफ़्ग़ाँ शुद

    ‘शम्स’ तबरेज़ जब तुम्हारे रुख़्सार का गुल खिला

    तो बुलबुल शौक़ में कर नग़्मा-सराई करने लगी

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 264)

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