मन आँ रोज़ बूदम कि अस्मा न-बूद
निशाँ अज़ वजूद-ए-मुसम्मा न-बूद
मैं उस दिन, जबकि वस्तुओं का नामकरण नहीं हुआ था, प्रस्तुत था;
तब न वह वस्तुएँ ही थीं जिनका नाम रक्खा गया है।
ज़े-मा शुद मुसम्मा-ओ-अस्मा पदीद
दराँ रोज़ की-आँ-जा मन-ओ-मा न-बूद
मुझी से नाम रक्खी गई वस्तुएँ और सब नाम उत्पन्न हुए और
वह भी उस दिन जब कि वहाँ मैं और तू का भेद-भाव कुछ भी न था।
निशाँ गश्त मज़हर सर-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
हनूज़ आँ सर-ऐ-जुल्फ़-ए-ज़ेबा न-बूद
यार की काली घुँघराली अलकों ने पथप्रदर्शक का कार्य किया
पर अब तक वह अलकें प्रकट नहीं हुई थीं।
चलीपा-ओ-नसरानियाँ सर-ब-सर
ब-पैमूदम अंदर चलेपा न-बूद
मैंने समस्त चिलेपा और नसरानियों को भली प्रकार देखा परन्तु
वह अलकें, वह घुँघराली लटें चिलेपा (सलीब पर चढ़ा हुआ मनुष्य,
ब-बुतख़ान: रफ़्तम ब-दैर-ए-कोहन
दरू हेच रंगे हुवैदा न-बूद
एक बहुत ही प्राचीन मन्दिर में गया। देखूँ कदाचित वहीं कुछ भेद मिले।
पर वहाँ भी दृष्टि को उस इच्छित वस्तु का कोई निशान न मिला।
ब-कोह-ए-हिराँ रफ़्तन व क़ंधार
ब-दीदम दराँ ज़ेर-ओ-बाला न-बूद
हिरात के पर्वतों पर चढ़कर देखा, कन्धार की पृथ्वी पर खोज की
पर उस ऊँचाई और निचाई में भी उसका पता न पाया।
ब-अ'म्दन शुदम बर-सर-ए-कोह-ए-क़ाफ़
दराँ जाए जुज़ जा-ए-अ'न्क़ा न-बूद
विश्वास था कि क़ाफ़ के पर्वतों में वह अवश्य मिलेगा।
पर वहाँ पहुँचने पर उनके (अप्सराओं के) निवास स्थान के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई न दिया।
ब-का'ब: कशीदम अ'नान-ए-तलब
दराँ मक़्सद-ए-पीर-ओ-बरना न-बूद
फिर खोज की। का’बे में पहुँचा परन्तु वहाँ भी
वह वृद्ध और युवाओं का हृदय-वल्लभ न मिला।
ब-पुर्सीदम अज़ इब्न-ए-सीनाश हाल
बर अन्दाज़ः-ए-इब्न-ए-सीना न-बूद
इब्न-ए-सीना (एक बहुत बड़े, हकीम) से पूछा,आप उसके विषय में कुछ
बता सकते है?
सू-ए-मन्ज़र-ए-क़ा'बा-क़ौसैं शुदम
दराँ बारगाह-ए-मुअ'ल्ला न-बूद
फिर मैंने ‘क़ाब-क़ौसैन’ के सुन्दर दृश्यों में उसकी खोज की
परन्तु उस दिव्य स्थान में भी उसे न-पाया।
निगह कर्दम अंदर दिल-ए-ख़्वेश्तन
दराँ जाश दीदम दिगर जा न-बूद
अन्त में मैंने अपने हृदय के कोने में दृष्टि डाली।
देखता क्या हूँ कि वह वहीं पर उपस्थित है। मैं दूसरे स्थानों में व्यर्थ भटकता फिरा।
ब-जुज़ 'शम्स-तबरेज़' पाकीज़ः जाँ
कसे मस्त-ओ-मख़्मूर-ओ-शैदा न-बूद
सारांश यह कि पवित्र शम्स तबरेज़ के अतिरिक्त
कोई मस्त और मतवाला प्रेमी न था।
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