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Sufinama

मन हेचम-ओ-कम ज़े-हेच हम बिस्यारे

जामी

मन हेचम-ओ-कम ज़े-हेच हम बिस्यारे

जामी

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    मन हेचम-ओ-कम ज़े-हेच हम बिस्यारे

    अज़ हेच-ओ-कम अज़ हेच आयद कारे

    हर सिर्र कि ज़े-असरार-ए-हक़ीक़त गोयम

    ज़ानम न-बुवद बहरः ब-जुज़ गुफ़्तारे

    मैं अकर्मण्य हूँ और बहुत से अकर्मण्य मनुष्यों से गया बीता हूँ। साधारण और निम्न श्रेणी वालों का कार्य उसी श्रेणी वालों से नहीं सरता।

    मैं रहस्यों को कहता अवश्य हूँ परन्तु रहस्य उद्घाटन करने वालों में से नहीं हूँ।

    प्रेम के मार्ग में यदि सन्यास ले तो उसमें गुमनाम रहना ही उत्तम है और प्रणय की कथा कहने में गंगा ही बना रहना उचित है।

    दर आ'लम-ए-फ़क़्र बे-निशाने ऊला

    दर क़िस्सा-ए-इश्क़ बे-ज़बाने ऊला

    ज़ाँ-कस कि अहल-ए-ज़ौक़-ओ-असरार बुवद

    गुफ़्तन ब-तरीक़-ए-तर्जुमानी ऊला

    सुफ़्तम गोहरे चू रौशन-ख़िर्दां

    दर तर्जुम:-ए-हदीस-ए-आ'ली-सनदाँ

    बाशद ज़े-मन-ए-हेचमदाँ मोअ'तमिदाँ

    ईं तोहफ़ः रसानंद ब-शाह-ए-हमदाँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : लवाएह जामी (पृष्ठ 4)
    • रचनाकार : मुल्ला जामी
    • प्रकाशन : नामी मुंशी नवल किशोर (1900)

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