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मनम दर कुल्ल-ए-मौजूदात पैदा

अहमद जाम

मनम दर कुल्ल-ए-मौजूदात पैदा

अहमद जाम

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    मनम दर कुल्ल-ए-मौजूदात पैदा

    मनम दर किसवत-ए-आदम हुवैदा

    ब-ज़ाहिर हमारा अस्तित्व (ज़ात) तमाम वस्तुओं में प्रकट है, मेरे अलावा कोई दूसरी चीज़ मौजूद नहीं।

    ब-ज़ाहिर ज़ात-ए-मन दर जुमल:-अशिया अस्त

    मनम जुज़ मन न-बाशद हेच पैदा

    मैं ने अपने अस्तित्व को तमाम सूरतों में ज़ाहिर किया, कभी आदम (पहले पैग़म्बर) की शक्ल में तो कभी हव्वा (पैग़म्बर आदम की पत्नी का नाम) की सूरत में।

    बहर-सूरत नमूदम ज़ात-ए-ख़ुद रा

    गहे बर शक्ल-ए-आदम गाह हव्वा

    कभी मैं ने अपने इ’श्क़ से मज्नूँ की आदत उत्पन्न की, कभी अपने हुस्न से लैला की तरह हो गया।

    गहे अज़ इश्क़-ए-ख़ुद मजनूँ सरिश्तम

    गहे अज़ हुस्न-ए-ख़ुद हस्तम चु लैला

    तू ‘अहमदी’ अस्तित्व को अपना वजूद समझ, तेरी ज़ात से ही सारी चीजें प्रकट हुई हैं।

    तू ज़ात-ए-'अहमदी' रा ज़ात-ए-खुद दाँ

    ज़े-ज़ातश आमदः-ई जुमल:-अशिया

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