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हमेशः मन चुनीं मज्नूँ न-बूदम

रूमी

हमेशः मन चुनीं मज्नूँ न-बूदम

रूमी

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    हमेशः मन चुनीं मज्नूँ न-बूदम

    ज़ 'अक़्ल-ओ-'आक़िबत बैरूँ न-बूदम

    मैं इस तरह कभी मज्नूँ नहीं था

    मैं ’अक़्ल और अंजाम से बे-ख़बर नहीं था

    चु तू 'आक़िल बुदम मन तीर रोज़े

    चुनीं दीवानः-ओ-मफ़्तूँ न-बूदम

    मैं तुम्हारी तरह ’अक़्ल-मंद था मगर हाय रे ये बद-बख़्ती

    मैं कभी ऐसा दीवाना और मज्नूँ नहीं था

    मिसाल-ए-दिल-बराँ सय्याद बूदम

    मिसाल-ए-दिल मयान-ए-ख़ून बूदम

    मैं मा’शूक़ों की तरह सय्याद था

    दिल की तरह मैं ख़ून के अंदर था

    दरीं बूदम कि ईं चूनस्त-ओ-आँ चूँ

    चुनीं हैरान-ए-आँ हम-चु न-बूदम

    मैं इस फ़िक्र में था कि ये ऐसा है वो ऐसा है

    मैं इस तरह हैरान कभी नहीं था

    तू बारे 'आक़िले ब-नशीं ब-यन्देश

    कि अव्वल बूद:-अम अक्नूँ न-बूदम

    कभी किसी ’अक़्ल-मंद के पास बैठ और सोच

    कि मैं पहले वैसा था अब नहीं हूँ

    चू गंज अज़ ख़ाक-ए-बैरूँ ऊफ़्तादम

    कि गंजे बूदम-ओ-क़ारूँ न-बूदम

    मैं खज़ाने की तरह ख़ाक से बाहर गया

    मैं ख़ज़ाना तो था लेकिन क़ारून नहीं था

    बुदम दिलशाद-ओ-'इश्क़त 'शम्स-तबरेज़'

    वले दर 'इश्क़ दिल-ए-पुर-ख़ूँ न-बूदम

    ‘शम्स’ तबरेज़ मैं तुम्हारे ’इश्क़ से ख़ुश था

    लेकिन ’इश्क़ में मेरा दिल मायूस नहीं था

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 494)

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