चे बूयस्त ईं चे बूयस्त ईं मगर आँ यार मी-आयद
चे बूयस्त ईं चे बूयस्त ईं मगर आँ यार मी-आयद
मगर आँ यार-ए-गुल-रुख़्सार अज़ गुलज़ार मी-आयद
कितनी बेहतरीन ख़ुशबू है कितनी बेहतरीन ख़ुशबू है शायद मेरा यार आ रहा है
शायद फूल जैसे रुख़्सार वाला यार बाग़ से आ रहा है
सुबू-ए-मय चे मी-जोई दहानश रा चे मी-बोई
तु पिंदारी कि ऊ चूँ तू अज़ाँ ख़म्मार मी-आयद
शराब के प्याले को क्यूँ तलाश कर रहे हो, उस के मुँह को क्यूँ सूँघ रहे हो
क्या तुम ये समझ रहे हो कि वो तुम्हारी तरह मय-कदे से आया है
चे ख़ुर्द ईं दिल दराँ महफ़िल कि हम-चु मस्त अंदर गिल
अज़ाँ मय-ख़ानः चूँ मस्ताँ चे ना-हमवार मी-आयद
इस दिल ने उस महफ़िल में कौन सी शराब पी ली कि मिट्टी में मद-होश पड़ा है
ये उस मय-ख़ाना से मस्तों की तरह लुढ़कते लुढ़कते आ रहा है
चे नुक़साँ आफ़्ताबे रा अगर तन्हा रवद दर रह
चे नुक़साँ हश्मत-ए-मह रा कि बे-अस्तार मी-आयद
अगर सूरज तंहा सफ़र करे तो उसे क्या फ़र्क़ पड़ेगा
अगर चाँद के साथ सितारे न हों तो उस की शौकत में क्या कमी आएगी
चे नूरस्त ईं चे ताबस्त ईं चे माह-ओ-आफ़्ताबस्त ईं
मगर आँ यार-ए-ख़ल्वत-जू ज़ कोह-ए-ग़ार मी-आयद
ये कैसी रौशनी है, ये कैसी चमक है, ये चाँद है या सूरज
शायद तंहाई पसंद वो यार पहाड़ के ग़ार से आ रहा है
गहे दर कू-ए-बीमाराँ चु जालीनूस मी-गर्दद
गहे बर शक्ल-ए-बीमाराँ ब-हैरत-ज़ार मी-आयद
कभी वो जालीनूस बन कर बीमारों की गली में भटकता है
तो कभी वो बीमारों की शक्ल बना कर सब को हैरत में डाल जाता है
ख़मुश कर्दम ख़मुश कर्दम कि ईं दीवान-ए-शे'र-ए-मन
ज़ शर्म-ए-आँ परी-चेहरः ब-इस्तिग़फ़ार मी-आयद
मैं ख़ामोश हो गया मैं ख़ामोश हो गया क्यूँकि मेरा ये दीवान
उस परी-चेहरा से शर्मिंदा हो कर इस्तिग़फ़ार कर रहा है
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 201)
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