ज़हे 'इश्क़ ज़हे 'इश्क़ कि मा रास्त ख़ुदाया
ज़हे 'इश्क़ ज़हे 'इश्क़ कि मा रास्त ख़ुदाया
चे नग़्ज़स्त-ओ-चे ख़ूबस्त-ओ-चे ज़ेबास्त ख़ुदाया
ऐ ख़ुदा हमें जो ’इश्क़ है उस का क्या कहना, उस का क्या कहना
ऐ ख़ुदा ये कितना प्यारा, कितना अच्छा और कितना ख़ूबसूरत है
चे गर्मेम चे गर्मेम अज़ीं 'इश्क़ चे ख़ुर्शीद
चे पिन्हाँ-ओ-चे बुर्हाँ-ओ-चे पैदास्त ख़ुदाया
ऐ ख़ुदा उस ’इश्क़ की वजह से कितनी गर्मी है कितनी गर्मी है
ऐ ख़ुदा ये कितना छुपा, कितना ज़ाहिर और कितना पोशीदा है
फ़ुतादेम फ़ुतादेम बद इंसाँ कि न ख़ेज़ेम
न-दानेम न-दानेम चे ग़ोग़ास्त ख़ुदाया
हम इस तरह गिर गए, इस तरह गिर गए कि उठ न पाएँगे
ऐ ख़ुदा मुझे नहीं मा’लूम, मुझे नहीं मा’लूम कि ये कैसा शोर है
ज़हे माह ज़हे माह ज़हे बादः-ए-हुमरा
कि मर जाँ-ओ-जहाँ रा बयारास्त ख़ुदाया
उस चाँद का क्या कहना, उस चाँद का क्या कहना, उस सुर्ख़ शराब का क्या कहना
ऐ ख़ुदा उस ने मेरी जान और जहान दोनों को ख़ूबसूरत बनाया है
फ़रो ताख़्त फ़रो ताख़्त शहनशाह-ए-सवाराँ
ज़हे गर्द ज़हे गर्द कि बरख़ास्त ख़ुदाया
सवारों का शहनशाह इस क़दर सरपट दौड़ा
इस क़दर गर्द उठी, इस क़दर गर्द उठी ऐ मेरे ख़ुदा
ख़मुश बाश ख़मुश बाश कि ता फ़ाश न-गर्दद
कि अग़्यार गिरफ़्तस्त चप-ओ-रास्त ख़ुदाया
ख़ामोश रहो ख़ामोश रहो ताकि राज़ फ़ाश न हो
हाय ख़ुदा! दाएँ और बाएँ कुछ लोग हैं
ज़हे शोर ज़हे शोर कि अंगेख़्त ज़ 'आलम
ज़हे कार-ओ-ज़हे यार कि आँ-जास्त ख़ुदाया
दुनिया में जो शोर बरपा है उस का क्या कहना उस का क्या कहना
ऐ ख़ुदा मेरे यार और मेरे यार के काम क्या कहना
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 16)
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