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Sufinama

ज़हे 'इश्क़ ज़हे 'इश्क़ कि मा रास्त ख़ुदाया

रूमी

ज़हे 'इश्क़ ज़हे 'इश्क़ कि मा रास्त ख़ुदाया

रूमी

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    ज़हे 'इश्क़ ज़हे 'इश्क़ कि मा रास्त ख़ुदाया

    चे नग़्ज़स्त-ओ-चे ख़ूबस्त-ओ-चे ज़ेबास्त ख़ुदाया

    ख़ुदा हमें जो ’इश्क़ है उस का क्या कहना, उस का क्या कहना

    ख़ुदा ये कितना प्यारा, कितना अच्छा और कितना ख़ूबसूरत है

    चे गर्मेम चे गर्मेम अज़ीं 'इश्क़ चे ख़ुर्शीद

    चे पिन्हाँ-ओ-चे बुर्हाँ-ओ-चे पैदास्त ख़ुदाया

    ख़ुदा उस ’इश्क़ की वजह से कितनी गर्मी है कितनी गर्मी है

    ख़ुदा ये कितना छुपा, कितना ज़ाहिर और कितना पोशीदा है

    फ़ुतादेम फ़ुतादेम बद इंसाँ कि ख़ेज़ेम

    न-दानेम न-दानेम चे ग़ोग़ास्त ख़ुदाया

    हम इस तरह गिर गए, इस तरह गिर गए कि उठ पाएँगे

    ख़ुदा मुझे नहीं मा’लूम, मुझे नहीं मा’लूम कि ये कैसा शोर है

    ज़हे माह ज़हे माह ज़हे बादः-ए-हुमरा

    कि मर जाँ-ओ-जहाँ रा बयारास्त ख़ुदाया

    उस चाँद का क्या कहना, उस चाँद का क्या कहना, उस सुर्ख़ शराब का क्या कहना

    ख़ुदा उस ने मेरी जान और जहान दोनों को ख़ूबसूरत बनाया है

    फ़रो ताख़्त फ़रो ताख़्त शहनशाह-ए-सवाराँ

    ज़हे गर्द ज़हे गर्द कि बरख़ास्त ख़ुदाया

    सवारों का शहनशाह इस क़दर सरपट दौड़ा

    इस क़दर गर्द उठी, इस क़दर गर्द उठी मेरे ख़ुदा

    ख़मुश बाश ख़मुश बाश कि ता फ़ाश न-गर्दद

    कि अग़्यार गिरफ़्तस्त चप-ओ-रास्त ख़ुदाया

    ख़ामोश रहो ख़ामोश रहो ताकि राज़ फ़ाश हो

    हाय ख़ुदा! दाएँ और बाएँ कुछ लोग हैं

    ज़हे शोर ज़हे शोर कि अंगेख़्त ज़ 'आलम

    ज़हे कार-ओ-ज़हे यार कि आँ-जास्त ख़ुदाया

    दुनिया में जो शोर बरपा है उस का क्या कहना उस का क्या कहना

    ख़ुदा मेरे यार और मेरे यार के काम क्या कहना

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 16)

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