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ऐ ख़ुदा अज़ 'आशिक़ाँ ख़ुशनूद बाद

रूमी

ऐ ख़ुदा अज़ 'आशिक़ाँ ख़ुशनूद बाद

रूमी

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    ख़ुदा अज़ 'आशिक़ाँ ख़ुशनूद बाद

    'आशिक़ाँ रा 'आक़िबत महमूद बाद

    ख़ुदा तू ’आशिक़ों से राज़ी हो जा

    ’आशिक़ों का अंजाम अच्छा हो

    आशिक़ाँ रा अज़ जमालत 'ईद बाद

    जान-ए-शाँ दर आतिशत चूँ 'ऊद बाद

    तेरा जमाल ’आशिक़ों के लिए ’ईद बन जाए

    उनकी जान तेरी आग में ’ऊद की तरह जलती रहे

    दस्त कर्दी दिल-बरा दर ख़ून-ए-मा

    जान-ए-मा ज़ीं दस्त-ए-ख़ूँ आलूद बाद

    तूने हमारे ख़ून में हाथ डाल दिया

    अब हमारी ज़िंदगी उस हाथ से ख़ून-आलूद रहे

    दीगराँ अज़ मर्ग मोहलत ख़्वास्तंद

    'आशिक़ाँ गोयन्द ने ने ज़ूद बाद

    लोग मौत से मोहलत चाहते हैं लेकिन

    ’आशिक़ कहते हैं नहीं नहीं जल्दी जाए

    हर कि गोयद कि ख़लासम देह ज़ 'इश्क़

    ईं दु'आ बर आसमाँ मर्दूद बाद

    जो ये दु’आ करे कि मुझे ’इश्क़ से नजात मिले

    उस की ये दु’आ हरगिज़ क़ुबूल हो

    आसमाँ अज़ दूद 'आशिक़ साख़्तंद

    आफ़रीं बर साहिब-ए-ईं दूद बाद

    आसमान की तख़्लीक़ ’आशिक़ों के धुएँ से हुई है

    ऐसे धुएँ वाले लोगों पर आफ़रीं

    हर कि शुद अज़ जाँ ग़ुलाम-ए-'शम्स-ए-दीं'

    ता क़यामत ताले'अश मस'ऊद बाद

    जो दिल से ‘शम्स दीं’ का ग़ुलाम बन गया

    इस का सितारा क़ियामत तक चमकता रहे

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 289)

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