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दरमियान-ए-’आशिक़ाँ 'आक़िल मया

रूमी

दरमियान-ए-’आशिक़ाँ 'आक़िल मया

रूमी

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    दरमियान-ए-'आशिक़ाँ 'आक़िल मया

    ख़ासः अंदर 'इश्क़-ए-आँ ला'लीं क़बा

    ’अक़्ल-मंद ’आशिक़ों के दरमियान मत

    ख़ूबसूरत कपड़ा पहनने वाले उस ’इश्क़ से दोस्ती मत कर

    'अक़्ल बा-तदबीर-ओ-अंदेशः कुनद

    रफ़्तः बाशद 'इश्क़ बर हफ़्तुम समा

    ’अक़्ल ग़ौर-ओ-फ़िक्र कर के क़दम उठाती है

    जबकि ’इश्क़ सातवें आसमान का सफ़र कर जाता है

    'अक़्ल ता-जूयद शुतुर अज़ बहर-ए-हज

    रफ़्तः बाशद 'इश्क़ बर कोह-ए-सफ़ा

    ’अक़्ल को हज पर जाने के लिए ऊँट चाहिए

    हालाँ-कि ’इश्क़ कोह-ए-सफ़ा पर यूँही चढ़ जाता है

    नंग आयद 'इश्क़ रा अज़ नूर-ए-अक़्ल

    बद बूद पीरी दर अय्याम-ए-सबा

    ’अक़्ल की रौशनी ’इश्क़ के लिए बा’इस ’आर है

    बचपन में बुढ़ापा मायूब शय हुआ करता है

    जाँ न-गीरद 'शम्स' तबरेज़ी ब-दस्त

    दस्त बर दिल नेह बरूँ रौ क़ालिबा

    ’शम्स’ तबरेज़ी की जान उस के हाथ में नहीं है

    हाथ को दिल पर रख और जिस्म तू बाहर का रास्ता ले

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 70)

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