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Sufinama

चुनाँ मस्तम चुनाँ मस्तम मन इमरोज़

रूमी

चुनाँ मस्तम चुनाँ मस्तम मन इमरोज़

रूमी

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    चुनाँ मस्तम चुनाँ मस्तम मन इमरोज़

    कि अज़ चम्बर बरूँ जुस्तम मन इमरोज़

    मैं आज इतना मस्त हुआ इतना मस्त हुआ

    कि आज मैंने आसमान से छलाँग लगा दी

    बशो 'अक़्ल दस्त-ए-ख़्वेश अज़ मन

    कि बा-मज्नूँ ब-पैवस्तम मन इमरोज़

    ’अक़्ल तू अब मुझ से अपना हाथ धो ले

    इसलिए कि मैं आज से मज्नूँ हो गया हूँ

    चुनानम कर्द आँ इबरीक़ पुर-मय

    कि चन्दीं ख़ुंब ब-शिकस्तम मन इमरोज़

    आज मैंने सुराही इस क़दर भर ली है

    कि आज मैंने कितने प्याले तोड़ डाले

    नमी दानम कुजायम लैक फ़र्रूख़

    मक़ामी कन्दरू हस्तम मन इमरोज़

    मुझे नहीं मा’लूम कि मैं कहाँ हूँ

    लेकिन मैं जिस मक़ाम पर आज हूँ, उस का क्या कहना

    चु वा गश्त पय-ए-ऊ मी दवीदेम

    दमे अज़ पाए नशिस्तम मन इमरोज़

    जब वो दूर से मुझे नज़र आया मैं उस के पीछे दौड़ा

    मैंने एक पल के लिए भी दम लिया

    चु नहनु-अक़्रबम मा'लूम आमद

    अगर ख़ुद रा ब-परस्तम मन इमरोज़

    जब नहनु-अक़्रबु का मुझे ’इल्म हुआ

    तो मैंने ख़ुद-परस्ती शुरू’ कर दी

    ब-बन्द-ए-ज़ुल्फ़-ए-'शम्सुद्दीन' तबरेज़

    चु माही अंदरीं शस्तम मन इमरोज़

    ‘शम्सुद्दीन’ तबरेज़ की ज़ुल्फ़ में गिरफ़्तार हो कर

    मैंने आज ख़ुद को मछली की तरह पाक कर लिया

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 397)

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