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Sufinama

ज़ शौकत मन ज़ तन बेगानः गर्दम

रूमी

ज़ शौकत मन ज़ तन बेगानः गर्दम

रूमी

MORE BYरूमी

    ज़ शौकत मन ज़ तन बेगानः गर्दम

    शराब-ए-'इश्क़ रा पैमानः कर्दम

    मैं तुम्हारे शौक़ में तन से बे-गाना हो गया हूँ

    मैंने ’इश्क़ की शराब पैमाने में भर ली है

    ज़ मस्जिद बाज़ मानम दर ख़राबात

    ब-गिर्द-ए-कूचः-ए-मय-ख़ानः गर्दम

    मैंने मस्जिद के बजाय शराब-ख़ाने को मस्कन बना लिया है

    मैं मय-ख़ाने की गली के आस-पास घूमता हूँ

    हदीसम बा'द अज़ाँ मस्तानः बाशद

    ब-बाज़ार अंदरूँ मस्तानः गर्दम

    उस के बा’द मेरी बात मस्तों जैसी होगी

    बाज़ारों के अंदर मैं मस्तों की तरह घूमूँगा

    रसानम ख़्वेश रा अज़ सोज़ जाए

    कि दर इक़्लीम-हा अफ़्सानः गर्दम

    काश ऐसा हो कि मैं सोज़ से ख़ुद को ऐसी जगह पहुँचा दूँ कि

    मैं ज़माने में अफ़साना बन जाऊँ

    शवम आज़ाद-ओ-फ़ारिग़ अज़ दो-'आलम

    ग़ुलाम-ए-ख़ूबी-ए-जानानः गर्दम

    मैं दोनों जहान से आज़ाद और बे-नियाज़ हो कर

    अपने महबूब का प्यारा ग़ुलाम बन जाऊँ

    कुनम बा-बहर-ए-मा'नी आश्नाई

    वज़ीं ख़्वेशाँ हम: बेगानः गर्दम

    मैं हक़ीक़त के मा’नी से आश्ना हो जाऊँ

    और अपने तमाम लोगों से बेगाना हो जाऊँ

    ब-दश्त-ए-'इश्क़ चूँ शेराँ दर आयम

    चुँ तिफ़्लाँ चंद दर काशानः गर्दम

    मैं ’इश्क़ के जंगल में शेरों की तरह जाऊँ

    मैं बच्चों की तरह घर-घर घूमा करूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 490)

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