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सवाल - कि शुद बर सिर्र-ए-वहदत वाक़िफ़ आख़िर

महमूद शबिस्तरी

सवाल - कि शुद बर सिर्र-ए-वहदत वाक़िफ़ आख़िर

महमूद शबिस्तरी

MORE BYमहमूद शबिस्तरी

    सवाल

    प्रश्न

    कि शुद बर सिर्र-ए-वहदत वाक़िफ़ आख़िर

    शनासाई चे आमद आरिफ़ आख़िर

    अद्वैत का रहस्य कौन जानता है? नानी ने किस गुप्त भेद को पहचाना है?

    जवाब

    उत्तर

    कसे बर सिर्र-ए-वहदत गश्त वाक़िफ़

    कि वाक़िफ़ न-शुद अंदर मुआफ़िक़

    अद्वैत के रहस्य को वही मनुष्य जान सका है, जो अपने मार्ग में कहीं ठहरा नहीं है जो अविश्रान्त रूप से आगे ही बढ़ता गया है।

    दिल-ए-आरिफ़ शनासा-ए-वजूद-अस्त

    वजूद-ए-मुत्लक़ रा दर शुहूद-अस्त

    परन्तु ज्ञानी वह है जो सत् को समझता है। उसे सत् सदैव साफ़ दिखलाई पड़ता है।

    ब-जुज़ हस्त-ए-हक़ीक़ी हस्त न-शनाख़्त

    या हस्ती कि हस्ती पाक दर बाख़्त

    बस तू केवल यार के विश्राम करने के स्थान को अपने हृदय-मंदिर को झाड़कर स्वच्छ कर ले।

    वजूद-ए-तू हम: ख़ार-अस्त-ओ-ख़ाशाक

    बरूँ अंदाज़ अज़ ख़ुद जुम्ल: रा पाक

    जब तेरे हृदय से अहंकार निकल गया उस समय वह अन्दर जा पाएगा और उस समय वह अपना जल्वा दिखलावेगा।

    ब-रौ तू ख़ाना-ए-दिल रा फ़रव रो'ब

    मुहय्या कुन मक़ाम-ए-जा-ए-महबूब

    उसका निवास उसी स्थान में होगा जिसकी प्रशंसा की गई है। और उसे यह पद मिल जाता है कि वह मेरी ही आँखों से देखता है और मेरे ही कानों से सुनता है।

    चु तू बरूँ शुदी अंदर आयद

    ब-तू पय-ए-तू जमाल-ए-ख़ुद नुमायद

    जब तक जीवन का एक उद्देश्य भी शेष रहता है तब तक ज्ञानी का ज्ञान वास्तविक नहीं कहा जा सकता है।

    कसे कू अज़ नवाफ़िल गश्त महबूब

    बला-ए-नफ़्इ कर्दश ख़ान: जारूब

    इस संसार में रुकावट डालने वाली चार वस्तुएँ हैं और उनसे पृथक होने के भी चार उपाय हैं।

    दरून-ए-जान-ए-महबूब मकाँ याफ़्तः

    ज़े-बी-यसमा'-ओ-बे-यब्सुर निशाँ याफ़्त

    सब से प्रथम गन्दी और हानि पहुँचाने वाली वस्तुओं से बचना है। दूसरा-अपकर्मों और बुरी इच्छाओं के जाल से पृथक रहना है।

    ज़े-हस्ती ता बुवद बाक़ी ब-रौ शैन

    न-याबद इल्म-ए-आ'रिफ़ सूरत-ए-ऐ'न

    तीसरा—ऐसी बुरी आ’दतों से अपने आपको बचाना है, जिनके कारण मनुष्य पशु हो जाता है।

    मवाने' ता गर्दानी ज़े-ख़ुद दूर

    दरून-ए-ख़ाना-ए-दिल नायदत नूर

    चौथा—अपने रहस्य को दूसरों के हस्ताक्षेप से बिल्कुल पवित्र रखना है। यहाँ पर उसकी चाल समाप्त हो जाती है।

    मवाने' चूँ दरीं आलम चहार-अंद

    तहारत करदन अज़ वै हम चहार-अंद

    जिस मनुष्य ने उपर्युक्त ढंग से कार्य करके अपने आपको पवित्र बना लिया है, वह निस्सन्देह ईश्वर से वार्तालाप करने योग्य हो जाएगा।

    नख़ुस्तीं पाकी अज़ अहदास-ओ-अन्जास

    दोवम अज़ मासियत वज़ शर्र-ए-वसवास

    प्रार्थी! तेरी प्रार्थना उस समय तक प्रार्थना होगी, जिस समय तक अंहकार तेरे हृदय से बिल्कुल मिट जाएगा।

    सिवुम पाकी ज़े-अख़लाक़-ए-ज़मीम-अस्त

    कि बा आदमी हम चूँ बहीम-अस्त

    जब तू सब प्रकार की मलीनता से रहित हो जाएगा, तब तेरी प्रार्थना सुनी जाएगी।

    उस समय मार्ग में कोई रोड़ा रह जाएगा। उपासक तथा उपास्य में कोई अन्तर रहेगा।

    चहारुम पाकी-ए-सिर्र-अस्त अज़ ग़ैर

    कि ईं जा मुंतही मी-गर्ददश सैर

    बुद्धि के अतिरिक्त मनुष्य के पास एक ऐसी शक्ति है, जिसके द्वारा वह रहस्यों का उद्घाटन करता है।

    हर आँ कू कर्द हासिल ईं तहारात

    शवद बे-शक सज़ावार-ए-मुनाजात

    तू ता ख़ुद रा ब-कुल्ली दर न-बाज़ी

    नमाज़द कै शवद हरगिज़ नमाज़ी

    चू ज़ातत पाक गर्दद अज़ हम आँ शैन

    नमाज़त गर्दद अंगह क़ुर्रुतल-ऐन

    न-मांद दरमियाना हेच तमीज़

    शवद मारूफ़-ओ-आरिफ़ जुमल: यक चीज़

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