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Sufinama

ज़हे नफ़्स-ए-नबी चूँ गौहर-ए-जाँ पाक दामाने

शाह अकबर दानापूरी

ज़हे नफ़्स-ए-नबी चूँ गौहर-ए-जाँ पाक दामाने

शाह अकबर दानापूरी

ज़हे नफ़्स-ए-नबी चूँ गौहर-ए-जाँ पाक दामाने

ज़मीं रा बू-तुराब-ओ-अ’र्श रा ख़ुर्शीद-ए-ताबाने

ज़ात नबी का क्या कहना वो गौहर-ए-जाँ की तरह पाक दामन हैं, ज़मीं के लिए बू-तराब और अ’र्श के लिए ख़ुरशीद-ए-ताबाँ हैं

बुवद अज़ फ़ैज़-ए-पाकश क़तरः हम दरिया-ए-फ़ैज़ाने

बुवद हर ज़र्रः-ए-कूयश जवाब-ए-मेहर-ए-ताबाने

क़तरा उस के फ़ैज़ पाक से फ़ैज़ान का दरिया बन जाता है, उस के कूचे का हर ज़र्रा महर-ए-ताबाँ का हम-पल्ला हो जाता है

ब-दोश-ए-पाक-ए-ख़तमुल-अंबिया इस्तादः दर का'बः

ज़हे पायश ज़हे दोशश ज़हे रिफ़अ'त ज़हे शाने

का’बा में ख़ातिम-उल-अंबिया के दोश पाक पर ईस्तादा हुआ उस के क़दम, उस के शाने, उस की रिफ़अ’त और उस की शान का क्या कहना

शनीद अज़ राज़-ए-ऊ हर्फ़े कि चाह-ए-तीरः पुर-ख़ूँ शुद

ज़हे दाना-ए-असरारे ज़हे असरार-ए-पिनहाने

उस के राज़ की कुछ बातें सुनें और तारीक कुआँ पर-ख़ूँ हो गया

इस दाना-ए-राज़ और इस असरार-ए-पिनहाँ का क्या कहना

अ'लीयुन हुब्बुहु जुन्नः क़सीमुन्नारे-वल-जन्नः

इमाम-ए-शाफ़ि'ई रा बाशद ईं यक-बीस्त दीवाने

अली से मुहब्बत का सिला जन्नत है, वो जन्नत-ओ-जहन्नुम के मालिक हैं

इमाम शाफ़ई के ऐसे बीसियों दीवाने हैं

चे ख़ुश मदहस्त बहर-ए-मुर्तज़ा ईं मिस्रअ’म 'अकबर'

ख़ुदा-रा बंदः-ए-ख़ासे नबी-रा राहत-ए-जाने

अकबरध मुर्तज़ा की मदह में मेरा ये मिसरा कितना अच्छा है, वो ख़ुदा के ख़ास बंदे और नबी की राहत जान हैं

स्रोत :
  • पुस्तक : जज़्बात-ए-अकबर (पृष्ठ 8)
  • रचनाकार :शाह अकबर दानापुरी
  • प्रकाशन : आगरा अख़बार प्रेस आगरा (1915)
  • संस्करण : First

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