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muñh dikhlāve aur chhupe chhal-bal hai jagdīs
paas rahe har na mile is ko bisve biis
munh dikhlawe aur chhupe chhal-bal hai jagdis
pas rahe har na mile is ko biswe bis
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उस दा मुख इक जोत है, घुंघट है संसार ।
घुंघट में ओह छुप्प गया, मुख पर आंचल डार ।।
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बुल्लया मैं मिट्टी घुमयार दी, गल्ल आख न सकदी एक ।।
तत्तड़ मेरा क्यों घड़या, मत जाए अलेक-सलेक।।
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बुल्लया औंदा साजन वेख के, जांदा मूल ना वेख ।
मारे दरद फ़राक दे, बण बैठे बाहमण शेख ।।
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बुल्ला कसर नाम कसूर है, ओथे मूँहों ना सकण बोल ।
ओथे सच्चे गरदन-मारीए, ओथे झूठे करन कलोल ।।
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उन को मुख दिखलाए हैं, जिन से उस की प्रीत ।
उनको ही मिलता है वोह, जो उस के हैं मीत ।।
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इकना आस मुड़न दी आहे, इक सीख कबाब चढ़ाइयां ।।
बुल्लेशाह की वस्स ओनां, जो मार तकदीर फसाइयां ।।
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होर ने सब गल्लड़ियां, अल्लाह अल्लाह दी गल्ल ।
कुझ रौला पाया आलमां, कुझ काग़जां पाया झल्ल।।
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आई रुत्त शगूफ़यां वाली, चिड़ियां चुगण आइयां ।
इकना नूं जुर्रयां फड़ खाधा, इकना फाहीआं लाइयां ।।
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बुल्लया कसूर बेदस्तूर, ओथे जाणा बणया ज़रूर ।
ना कोई पुंन दान है, ना कोई लाग दस्तूर ।।
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