एक अलाह के मैं कुरबानी । दिल ओझल मेरा दिलजानी ।।
एक अलाह के मैं कुरबानी । दिल ओझल मेरा दिलजानी ।।
तू मेरा साहब मैं तेरा बन्दा । तू मेरि सभी हवस पहिंचन्दा ।।
बार बार तुम कहँ सिर नावौं । जानि जरूर तुम्हैं गोहरावौं ।।
तुमहिं हमारे मक्का मदीना । तुमहीं रोजा रिजिक रोजीना ।।
तुमहिं कोरान खतम खतमाना । तुम तसबी अरु दीन इमाना ।।
मैं आसिक महबूब तू दरसा । बेगर तोहि जहान जहर सा ।।
देहु दिदार दिलासा एही । नातर जाव बिनसि बरु देंही ।।
कादिर तुमहिं कदर को जाना । मैं हिन्दु किधों मूसलमाना ।।
धरनीदास खड़े दरवाजा । सब के तुमहिं गरीब निवाजा ।।
।। 4 ।।
मैं निरगुनियाँ गुन नहिं जाना । एक धनी के हाथ बिकाना ।।
सोइ प्रभु पक्का मैं अति कच्चा । मैं झूँठा मेरा साहब सच्चा ।।
मैं ओछा मेरा साहब पूरा । मैं कायर मेरा साहब सूरा ।।
मैं मूरख मेरा प्रभु ज्ञाता । मैं किरपिन मेरा साहब दाता ।।
धरनी मन मानो इक ठाउँ । सो प्रभु जीवो में मरिजाउँ ।।
।। 5 ।।
दूरि न भाई खसम खुदाई । है हाजिर पहिचानि न जाई ।।
ढूँढ़ो अपना एही वजूदा । बैठा मालिक महल मजूदा ।।
जा को साहब देत वफीक । चारि पियाला करु तहकीक ।।
महरम कोइ मिले जो यार । पल में पहुँचावै दरबार ।।
धरनी बखत-बलँदी सोइ । जाकी नजरि तमासा होइ ।।
।। 6 ।।
एक धनी धन मोरा हो । एक धनी धन मोरा हो ।।
काहू के धन सोना रूपा, काहू के हाथी घोरा हो ।
काहू के मनि मानिक मोती, एक धनी धन मोरा हो ।।
राज न हरै जरै न अगिन तें, कैसहु पाय न चोरा हो ।
खरचत खात सिरात कबहिं नहिं, घाट बाट नहिं छोरा हो ।।
नहिं सँदूक नहिं भुइँ खनि गाड़ो, नहिं पट घालि मरोरा हो ।
नैन के ओझल पलकन राखों, साँझ दिवस निसि भोरा हो ।।
जब धन लै मनि बेचन चाहे, तीनि हाट टकटोरा हो ।
कोई बस्तु नाहिं ओहि जोगे, जो मोलऊँ सो थोरा हो ।।
जा धन तें जन भये धनी बहु, हिंदू तुरुक करोरा हो ।
सो धन धरनी सहजहिं पायो, केवल सतगुरु के निहोरा हो ।।
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