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रूबाईयात

रबाईआत रुबाई की जमा है, ये अरबी का लफ़्ज़ है जिसके मअनी चार के हैं। शायराना मज़मून में रुबाई इस सिन्फ़ का नाम है जिसमें चार मिसरों में एक मुकम्मल मज़मून अदा किया जाता है। रुबाई के 24 ओज़ान हैं, पहले दूसरे और चौथे मिसरे में क़ाफ़िया लाना ज़रूरी है।

1833 -1889

क्लासिकी शैली और पैटर्न के प्रतिष्ठित शायर,अपनी किताब "सुख़न-ए-शोरा" के लिए मशहूर

-1953

मीलाद-ए-अकबर के मुसन्निफ़ और ना’त गो-शाइ’र

1934 -1989

औघट शाह वारसी के चहेते मुरीद

1843 -1928

मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र-ओ-अदीब

1901 -1963

बेदम शाह वारसी के मुरीद और मा’रूफ़ वारसी मुसन्निफ़-ओ-शाइ’र

1886 -1961

हैदराबाद का रुबाई’-गो सूफ़ी शाइ’र

1829 -1900

दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।

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