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सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
मोहम्मद मुस्तफ़ा तैबः के शाहंशाह का सेहराक़बा-ए-मुस्तफ़ा जामः है अनवार-ए-इलाही का
सुमन मिश्रा
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
असरार-ए-हक़ीक़त हो-हो कर असरार-ए-मोहम्मद आते हैंअनवार-ए-इलाही बन-बन कर अनवार-ए-मोहम्मद आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
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ग़ज़ल
मुनव्वर है ये सारी बज़्म-ए-अनवार-ए-इलाही सेशरीक-ए-बज़्म-ए-अक़्दस हो के कर लो क़ल्ब-ए-नूरानी
अब्दुल करीम मुज़तर
सूफ़ी शब्दावली
अल्लाह तआ’ला के अफ़्आ’ल दो अक़्साम पर मुन्क़सिम हैं। ज़ाहिरी और बातिनी, ज़ाहिरी महसूस हैं और
सूफ़ी शब्दावली
सलाम
अस्सलाम ऐ क़ासिम-ए-अनवार-ए-ईमाँ अस्सलामअस्सलाम ऐ माही-ए-ज़ुल्मात-ए-’इस्याँ अस्सलाम
क़सिमुल हक़ गयावी
शे'र
इलाही ख़ैर ज़ोरों पर बुतान-ए-पुर-ग़ुरूर आएकहीं ऐसा न हो ईमान-ए-आ’लम में फ़ुतूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मैं परतव-ए-अनवार-ए-ख़ुदा सिर्र-ए-निहाँ हूँ'आलम में निशाँ जिस का नहीं उस का निशाँ हूँ
औघट शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
हज़ारों बार अफ़ज़ल 'अर्श से अर्ज़-ए-मदीना हैयहाँ हर ज़र्रा अनवार-ए-इलाही का ख़ज़ीना है
ज़हीन शाह ताजी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ाहिर में तो आईना-ए-अनवार-ए-ख़ुदा हैदर-पर्दा हक़ीक़त में ख़ुदा जाने वो क्या है
अख़तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुल्तान-ए-मशाइख़ मिरे महबूब-ए-इलाहीअक़्ताब-ए-ज़माना के दिलों पर तिरी शाही