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ना'त-ओ-मनक़बत
गंज-ए-शकर तो घर-घर में लुटाते हैं सदक़ा साबिर काअपना तो 'अक़ीदा है कोई माने या न माने
अज्ञात
पद
सर पर टोपी गले में कफ़नी घर घर जाय सलाम किया
सर पर टोपी गले में कफ़नी घर घर जाय सलाम कियामयामोह से भरे हुए हैं आज़ादी का नाम किया
कवि दिलदार
ना'त-ओ-मनक़बत
अब्र शाह वरसी
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शे'र
तुम्हारे घर से हम निकले ख़ुदा के घर से तुम निकलेतुम्हीं ईमान से कह दो कि काफ़िर हम हैं या तुम हो
राक़िम देहलवी
सूफ़ी कहानी
मस्ख़रे की बीवी का क़ाज़ी को फ़रेब देकर अपने घर ले जाना -दफ़्तर-ए-शशुम
एक मस्ख़रा अपनी मुफ़्लिसी को देखकर बीवी से मुख़ातिब होता और कहता कि जब तुम्हारे पास
रूमी
अरिल्ल
अरिल छंद - प्रान चढ़ो असमान सहज घर जाइया
प्रान चढ़ो असमान सहज घर जाइयासुन्न सहर झकझोर सुरति ठहराइया
गुलाल साहब
ना'त-ओ-मनक़बत
सख़ा-ए-ख़्वाजा-ए-ख़ानून का है तज़्किरा घर-घरकोई ख़ाली नहीं जाता है इस दरबार में आकर
ख़्वाजा नाज़िर निज़ामी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
सलोक
फ़रीदा इट सिराने गोर घर कीड़ा पवसी मासि
फ़रीदा इट सिराने गोर घर कीड़ा पवसी मासिकितड़्यां जुग जानगे पया इकतु पासि
बाबा फ़रीद
सलोक
फ़रीदा दर भीड़ा घर संकड़ा गोर निबाहू नितु
फ़रीदा दर भीड़ा घर संकड़ा गोर निबाहू नितुदेख फ़रीदा जो थिया सो कलि चले मितु
बाबा फ़रीद
साखी
चितावनी का अंग - जा को रहना उत्त घर सो क्यों लोड़ै इत्त
जा को रहना उत्त घर सो क्यों लोड़ै इत्तजैसे पर घर पाहुना रहै उठाये चित्त