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ख़ुशी हर तरफ़ घर-ब-घर हो रही है फ़लक पर भी रहमत के बादल हैं छाए

अब्र शाह वारसी

ख़ुशी हर तरफ़ घर-ब-घर हो रही है फ़लक पर भी रहमत के बादल हैं छाए

अब्र शाह वारसी

MORE BYअब्र शाह वारसी

    ख़ुशी हर तरफ़ घर-ब-घर हो रही है फ़लक पर भी रहमत के बादल हैं छाए

    करो पेश मिल कर दरूदों के गजरे कि हैं मुस्तफ़ा आज दुनिया में आए

    फ़ज़ाएँ मुआफ़िक़ हवाएँ मुआफ़िक़ बहारें मुआफ़िक़ घटाएँ मुआफ़िक़

    करम ही करम है कि हक़ ने हमारे हैं बरसों के सोए मुक़द्दर जगाए

    चमन सब हैं महके शजर सब हैं लहके वो चटकी हैं कलियाँ वो बुलबुल हैं चहके

    ये रहमत की हर सू हवा चल रही है दिलों के हैं क़ुदरत ने ग़ुंचे खिलाए

    अमीरों में ख़ुशियाँ फ़क़ीरों में ख़ुशियाँ असीरों में ख़ुशियाँ ज़हीरों में ख़ुशियाँ

    कि वो ख़ातिम-उल-अंबिया बन के रहमत ज़माने में हैं आज तशरीफ़ लाए

    गिरा मुँह के बल लात मनात टूटा हुबल भी हुआ चूर ’उज़्ज़ा भी फूटा

    हुआ सर्द आतिश-कदा और शैताँ है रोता पहाड़ों में मुँह को छुपाए

    ये ख़त्म-ए-रुसुल हैं ये शम्अ-ए-सुबुल हैं ये बाइस-ए-कुल हैं ये वहदत के गुल हैं

    करो जान क़ुर्बां 'अब्र' उन पर उन्हों ने हैं बरसों के उजड़े बसाए

    स्रोत :
    • पुस्तक : Abr-e-Ishq (पृष्ठ 27)

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