आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "अव्वल-ए-शब"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "अव्वल-ए-शब"
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
आरज़ू लखनवी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी शब्दावली
सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-उ’मर के पास सफ़ीर-ए-क़ैसर का आना - दफ़्तर-ए-अव्वल
क़ैसर का एक सफ़ीर दूर-दराज़ बयाबानों को तय कर के हज़रत-ए-उ’मर से मिलने को मदीने पहुंचा।
रूमी
सूफ़ी शब्दावली
अन्य परिणाम "अव्वल-ए-शब"
सूफ़ी कहानी
एक शहर को आग लगनी हज़रत-ए-उ’मर के ज़माने में- दफ़्तर-ए-अव्वल
हज़रत-ए-उ’मरऊ के ज़माना-ए-ख़िलाफ़त में एक शहर को आग लगी। वो इस बला की आग थी कि
रूमी
सूफ़ी कहानी
सनअ'त-ए-नक़्क़ाशी में चीनियों और रुमियों का मुक़ाबला- दफ़्तर-ए-अव्वल
चीनियों को अपनी नक़्क़ाशी पर घमंड था और रुमियों को अपने कमाल का गर्व। सुल्तान ने
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक आ’राबी का ख़लीफ़ा-ए-बग़दाद के पास खारी पानी बतौर तोहफ़ा ले जाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
अगले ज़माने में एक ख़लीफ़ा था जिसने हातिम को भी अपनी सख़ावत के आगे भिकारी बना
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक दोस्त का हज़रत-ए-यूसुफ़ से मिलने आना और हज़रत-ए-यूसुफ़ का उस से हदिया तलब करना - दफ़्तर-ए-अव्वल
एक मेहरबान दोस्त किसी दूर मुल्क से आया और यूसुफ़-ए-सिद्दीक़ का मेहमान हुआ। चूँकि अपने को
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक ख़रगोश का शेर को मक्र से हलाक करना - दफ़्तर-ए-अव्वल
कलीला-ओ-दिमना से इस क़िस्से को पढ़ इस में से अपने हिस्से की नसीहत हासिल कर। कलीला-ओ-दिमना
रूमी
सूफ़ी कहानी
नह्वी और कश्तीबान (दफ़्तर-ए-अव्वल)
एक नह्वी कश्ती में बैठा और ख़ुद-परस्ती से कश्तीबान से मुख़ातिब हो कर कहने लगा कि
रूमी
सूफ़ी कहानी
हुदहुद के दा’वे पर कव्वे का ता'ना और हुदहुद का जवाब - दफ़्तर-ए-अव्वल
जब सुलैमान की बादशाहत का डंका बजा तो सब परिंदे इताअ'त में हाज़िर हुए जब उन्होंने
रूमी
सूफ़ी कहानी
ग़ुलामों का लुक़्मान पर इल्ज़ाम लगाना कि सब उ’म्दा मेवे खा गया- दफ़्तर-ए-अव्वल
हज़रत-ए-लुक़्मान एक शख़्स के ग़ुलाम थे, वो अमीर अपने तमाम ग़ुलामों में लुक़्मान ही को बहुत
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक यहूदी वज़ीर का मक्र–ओ-फ़रेब से नसरानियों में तफ़रक़ा डलवाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
एक यहूदी बादशाह बहुत ज़ालिम था वो ई'सा का दुश्मन और ई'साईयों का क़ातिल था अगरचे
रूमी
मल्फ़ूज़
उसी माह और उसी सन की 27 तारीख़ को फिर सआ’दत-ए-पा-बोसी नसीब हुई।शैख़ जमालुद्दीन मुतवक्किल, शम्स