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क़िता'
कभी हयात का ख़ौफ़ और कभी ममात का डर'अली हैं हामी तो क्यूँ कर है मुश्किलात का डर
सक़लैन अहमद जाफ़री
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहावत
फ़ेल-ए-हर कस ब अस्ल-ए-उस्त दलील
एक व्यक्ति का स्वभाव स्वयं के कार्यों से पहचाना जाता है
वाचिक परंपरा
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ना'त-ओ-मनक़बत
हयात-अफ़्ज़ा निगार-ए-शहर-ए-सरकार-ए-मदीना हैसहाब-ए-रहमत-ए-बारी यहाँ हर दम बरसता है
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
शाह हयात अहमद फ़िरदौसी
शे'र
'बेदम'-ए-ख़स्ता है कहाँ अस्ल में कोई और हैज़मज़मा-संज बे-ख़ुदी नग़्मा-तराज़ साज़-ए-इश्क़
बेदम शाह वारसी
सूफ़ी लेख
हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ चिश्ती अक़दार-ए-हयात के तर्जुमान-डॉक्टर सय्यद नक़ी हुसैन जा’फ़री
मुनादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
पर्दः-बर्दार ऐ हयात-ए-जान-ओ-दिल अफ़ज़ा-ए-मनग़म-गुसार-ओ-हम-नशीं-ओ-मूनिस-ए-शबहा-ए-मन
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
अस्ल तू मक़्सूद तू मस्जूद तू मा'बूद तूइब्तिदा तू इंतिहा तू जान-ए-हस्त-ओ-बूद तू