हयात-अफ़्ज़ा निगार-ए-शहर-ए-सरकार-ए-मदीना है
हयात-अफ़्ज़ा निगार-ए-शहर-ए-सरकार-ए-मदीना है
सहाब-ए-रहमत-ए-बारी यहाँ हर दम बरसता है
दयार-ए-सय्यद-ए-कौनैन को रिफ़अ'त मिली ऐसी
कि औज-ए-आसमाँ भी जिस के आगे सर-निहाद है
ज़िया-ए-ज़र्रा-ए-महबूब-ए-दो-आ’लम से
जबीन-ए-माह-ए-दो-हफ़्ता की तलअ'त रशक-अफ़्ज़ा है
शहंशाह-ए-मदीना की मोहब्बत सब पे ग़ालिब हो
मुसलमानो कमाल-ए-मोमिनीयत का तक़ाज़ा है
तलब-गार-ए-नवेद-ए-जन्नत-उल-फ़िरदौस में भी हों
मुझे उन की गली में जा के मरने की तमन्ना है
फड़कती है रग-ए-मिदहत लवा-ए-ना'त के नीचे
गिरोह-ए-हज़रत-ए-हस्साँ से मेरा भी इ’लाक़ा है
तलब से भी सिवा पाते हैं आकर साइलीन-ए-दहर
हमेशा जोश पर बहर-ए-अ’ता-ए-शाह-ए-तैबा है
मय-ए-हुब्ब-ए-शह-ए-बग़दाद की तासीर मत पूछो
न उतरे ज़िंदगी भर उस के अंदर ऐसा नश्शा है
हुआ जो भी असीर-ए-गेसू-ए-वल्लैल ऐ 'वासिफ़'
वो ज़िंदान-ए-ग़म-ओ-आलाम से आज़ाद रहता है
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