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ना'त-ओ-मनक़बत
हुस्न-ए-ज़ात-ए-किबरिया का आईना कलियर में हैमुस्तफ़ा तैबा में 'अक्स-ए-मुस्तफ़ा कलियर में है
अमीर बख़्श साबरी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अ'क्स-ए-रू-ए-तु चु दर आईना-ए-जाम उफ़्तादआरिफ़ अज़ परतव-ए-मय दर तमअ'-ए-ख़ाम उफ़्ताद
हाफ़िज़
ना'त-ओ-मनक़बत
नूर-ए-हक़ आ गया आईना-ए-वहदत बन करचमकी तक़दीर-ए-जहाँ 'आलम-ए-कसरत बन कर
शाह अब्दुल क़दीर बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ाहिर में तो आईना-ए-अनवार-ए-ख़ुदा हैदर-पर्दा हक़ीक़त में ख़ुदा जाने वो क्या है
अख़तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
तसव्वुर 'अर्श पर है वक़्फ़-ए-सज्दा है जबीं मेरीमिरा अब पूछना क्या आसमाँ मेरा ज़मीं मेरी
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
है शग़्ल-ए-तसव्वुर जो तेरा दम-ब-दम अपनासब कार से बढ़ कर है यही कार-ए-अहम अपना