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ग़ज़ल
न है आग़ाज़ से मतलब न है अंजाम से कामन ग़रज़ सुब्ह से मुझ को न मुझे शाम से काम
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
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गूजरी सूफ़ी काव्य
मेरे जीव कूँ पियु बाज आराम नईं
हर एक पल मने ग़म का आग़ाज़ है,वले दर्द का कुछ भी अंजाम नईं।
सय्यद इस्हाक़ सरमस्त
सूफ़ी साहित्य
मज्म 'उल् बह्रैन
माजरा-ए-मन-ओ-मा’शूक़-ए-मरा पायान नीस्त हर चे आग़ाज़ न-दारद न-पिज़ीरद अंजाम
दारा शिकोह
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
फ़स्ल-ए-गुल आई है साक़ी ला कटोरा फूल काबाग़ में आग़ाज़ बुलबुल का तराना हो गया
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
इसमें क़रीब 362 अश्आ’र हैं।मस्नवी का आग़ाज़ इन अश्आ’र से किया गया हैः-मर्हबा ऐ बुलबुल-ए-बाग़-ए-कुहन
सूफ़ीनामा आर्काइव
ना'त-ओ-मनक़बत
इन के सदक़े आज यौम बारहवें मुम्ताज़ हैबल्कि ये तारीख़ का इक नुक़्ता-ए-आग़ाज़ है