न है आग़ाज़ से मतलब न है अंजाम से काम
न है आग़ाज़ से मतलब न है अंजाम से काम
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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न है आग़ाज़ से मतलब न है अंजाम से काम
न ग़रज़ सुब्ह से मुझ को न मुझे शाम से काम
शोरिश-ए-दर्द ही काफ़ी है मिरी तस्कीन को
न दिल-आज़ार से मतलब न दिल-आराम से काम
रिश्ता-ए-ज़िंदगी किस तौर से मक़तू’ न हो
मुझे रहता है हमेशा तिरी समसाम से काम
किस से दिल जाके गिरफ़्तारी को अपनी कहिए
न क़फ़स से कोई वाक़िफ़ न रखे दाम से काम
वस्फ़ औरों का भला क्यूँ के मियाँ दिल को लगे
जिस को रहता हो सदा तेरी ही दुश्नाम से काम
'इश्क़' पैज़ार से उस की जिए या कोई मरे
यार मा'शूक़ को है अपने ही अब काम से काम
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