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कलाम
अज़म चिश्ती
सूफ़ी उद्धरण
अगर तुम्हारा आना-जाना अर्श तक भी हो जाए, तब भी सभी बुज़ुर्गों का अदब करना, चाहे वे हमारे सिलसिले के हों या किसी और सिलसिले के। हमने तो पूरी दुनिया के बुज़ुर्गों का अदब किया है।
शाह अब्दुल हई जहाँगीरी
ना'त-ओ-मनक़बत
कभी हो हसीं तसव्वुर कभी ख़ुद में जाऊँ चल करकहीं यूँही आना जाना सरकार की गली में
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
– दर्पण(33) आना जाना उसका भाए। जिस घर जाए लकड़ी खाए।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-दर्पण (33) आना जाना उसका भाए। जिस घर जाए लकड़ी खाए।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी वशारतुल अनवर
नंई उसको आना जाना अला न कमाकानउस नूर का निशाना नित हसत रह तूँ मीराँ
सय्यद मीराँ हुसैनी
ग़ज़ल
वही रफ़्तार हो जाना वही गुफ़्तार हो जानाकमाल-ए-इ'श्क़ है तिमसाल-ए-हुस्न-ए-यार हो जाना
नुशूर वाहिदी
सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-उ’मर के पास सफ़ीर-ए-क़ैसर का आना - दफ़्तर-ए-अव्वल
क़ैसर का एक सफ़ीर दूर-दराज़ बयाबानों को तय कर के हज़रत-ए-उ’मर से मिलने को मदीने पहुंचा।