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दोहा
विनय मलिका - तेरी दिस आसा लगी भ्रमत फिरौं सब दीप
तेरी दिस आसा लगी भ्रमत फिरौं सब दीपस्वाँती मिलै सनाथ हो जैसे चातृक सीप
दया बाई
पद
स्वानुभूति महत्व - बिनु देश उपजै नहीं आसा जो दीसै सो होइ बिनासा
बिनु देश उपजै नहीं आसा जो दीसै सो होइ बिनासाबरन सहित जो जापै नामु सो जोगी केवल निहकामु
रैदास
कलाम
हबाब-आसा में दम भरता हूँ तेरी आश्नाई कानिहायत ग़म है इस क़तरे को दरिया की जुदाई का
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
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सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
आसा मनसा सकल त्यागि कै,जग तैं रहै निरासा।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
दई विधाता पूजइ आसा, अस तिरिया जो पावइ पासा--- -चंदायन, 305.2
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
सरश्क-आसा रवाँ अज़ सोज़-ए-सीनागहे दर मक्का गाहे दर मदीना
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
दुगा उगा दहलात दुवन आसा प्रति लग्गहि। तज माह ग्रह बाल जाल बेहाल सुमग्गहि।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
प्रेम मगन, फिरत नगन, संग सरवा बाला। अस महेस विकट भेस, अजहूँ दरस आसा।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
निगः-आसा रवम बर औज-ए-अफ़्लाकज़े जा-ए-ख़्वेश जुंबीदन न-दारम
मयकश अकबराबादी
राग आधारित पद
साधो सतगुरु की बलिहारि हो ! -राग सोरठि
अगमवस्त अन्तर दिखलाई, देख्या अगम तमामा हो।।जनसेवादास सतगुरु के सरणै, पूरी मन की आसा हो।।
महाराज अमरपुरुष जी
दोहा
संपत तो हम के कटें, विपत कटें ना रोय।
संपत तो हम के कटें, विपत कटें ना रोय।'यकरंग' आसा राखिये, हरि चाहे सो होय।।
मुस्तफ़ा ख़ान यकरंग
राग आधारित पद
संतो है कोऊ एसा ग्यांनी- राग रामकली
लोभ मोह दोऊ दलपरहरि, सब घट राम ही जानें ॥आसा त्रिसना तजै कल्पना, बुरी भली सब त्यागै।।
तुरसीदास
शबद
।। मारू सोलहे महला -1 ।। -असुर सघारण रामु हमारा ।।
सूरजु तपै अगि बिखु झाला ।। अपतु पसू मनमुखु बेताला ।।आसा मनसा कूडु कमावहि रोगु बुरा बुरिआरा हे ।।
गुरु नानक
खंडकाव्य
इंद्रावति -जीव कहानी खंड
गये दोऊ क्रिपा के पासा। जिनको राज बहोरै आसा।क्रीपा आदर बहुतै कीन्हा। ठांउ परम मंदिर में दीन्हा।