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गूजरी सूफ़ी काव्य
बन्दे हैं तेरी छब के मह से जमालवाले
उज़लत' की आहों आगे तेरी निगाहों आगे,
क्या शोले झालवाले, क्या नेज़े भालवाले।
अब्दुल वली उज़लत
ग़ज़ल
क्या इन आहों से शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाएगी
ये सह सेहर होने की बातें हैं सेहर हो जाएगीगी