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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू-ए-दहर मत खा मर्द-ए-आ'क़िल होसमझ आतिश-कदा इस गुलशन-ए-शादाब-ए-दुनिया को
मीर मोहम्मद बेदार
ना'त-ओ-मनक़बत
बाग़-ए-'आलम को मिला रंग-ए-बहाराँ तुझ सेबज़्म-ए-हस्ती का हुआ हुस्न नुमायाँ तुझ से
सूफ़ी तबस्सुम
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अज़ किनार-ए-ख़्वेश याबम हर दमी मन बू-ए-यारचूँ न-गीरम ख़्वेश्तन रा हर शबी अंदर किनार
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
झूम रहा है चिश्ती गुलशन रंग-ए-फ़रीदी छाए हैंशाह-ए-मदीना गंज-ए-शकर को दूल्हा बनाने आए हैं
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
अहक़र बिहारी
संदल
वहीद इरफ़ान
शे'र
जिस दिन से बू-ए-ज़ुल्फ़ ले आई है अपने साथइस गुलशन-ए-जहाँ में हुआ हूँ सबा-परस्त
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
सूफ़ी कहानी
एक गीदड़ की शेख़ी जो रंग के नंदोले में गिर पड़ा था- दफ़्तर-ए-सेउम
वह्म की लज़्ज़त से तू अपना दिल इस तरह ख़ुश कर लेता है जैसे कोई शख़्स
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तुर्क-ए-सफ़ेद-रूए- व सियह-चश्म-ओ-लालः-रंगमिस्लत नज़ाद मादर-ए-अय्याम शोख़-ओ-शंग