झूम रहा है चिश्ती गुलशन रंग-ए-फ़रीदी छाए हैं
रोचक तथ्य
منقبت در شان گنجِ شکر بابا فریدالدین مسعود (پاک پتن-پنجاب)
झूम रहा है चिश्ती गुलशन रंग-ए-फ़रीदी छाए हैं
शाह-ए-मदीना गंज-ए-शकर को दूल्हा बनाने आए हैं
आओ फकीरो झोलियाँ भर लो सामने है दरबार-ए-करम
ख़्वाजा पिया जी गंज-ए-शकर का सदक़ा लुटाने आए हैं
संजर हो या कलियर बाबा देहली हो या पाकपतन
हम ने जहाँ भी हाथ पसारा तेरे सदक़े पाए हैं
हम क्या जाने दैर-ओ-हरम को हम ठहरे दीवाने लोग
हम तो बाबा इस चौखट पर सज्दे लुटाने आए हैं
उस की झोली भर जाती है जो भी दामन फैलाए
ख़्वाजा क़ुतुब के लाल ने देखो कैसे फ़ैज़ लुटाए हैं
हम पर भी या दिलबर-ए-ख़्वाजा हो जाए रहमत की नज़र
तेरे करम ने मोहताजों के सोए भाग जगाए हैं
क्यूँ न 'फ़ना' क़ुर्बान हो तुम पर तू ख़्वाजा की निस्बत है
गंज-ए-शकर हर जानिब तू ने चिश्ती रंग रचाए हैं
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